मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

वह अनाम व्यक्ति!



वह व्यक्ति अनाम ही रहा। एक मुख़्तसर सी मुलाक़ात में नाम जानने का समय ही नही मिला। कभी -कभी नाम जानना इतना जरूरी भी नही होता है।
SGPGI लखनऊ के राजधानी कोरोना हॉस्पिटल में ऐडमिट होने के बाद सबसे अधिक नज़र आने वाला व्यक्ति वही था। PPE किट में लिपटे हॉस्पिटल के स्टाफ की कोई इंडिविजुअल पहचान तो होती ही नही। किट पर ही लिखा, डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ , पेशेंट हेल्पर और अटैंडेंट देखकर बस इतना पता चल पाता है कि ये हॉस्पिटल का स्टाफ है। मरीज़ की पहचान साफ होती है । सामान्य डील-डौल वाला वह व्यक्ति कुर्ता-पायजामा और बिना बांह का स्वेटर पहने लगातार पूरे वार्ड में चहलकदमी करता नज़र आ रहा था। ऐडमिट होते समय डॉ वार्ड में ही टहलते रहने को कहते भी हैं। कोरोना संक्रमित व्यक्ति की दुनिया तो वार्ड के गेट के अंदर तक ही होती है।
ऐडमिट होने के बाद की तमाम प्रक्रियाएं पूरी करते हुए हम उसे टहलते हुए देखते रहे। 
उसका टहलना देर रात तक जारी रहा। हॉस्पिटल पहुंचने के बाद पहला दिन तो हॉस्पिटल पहुंचने के शॉक में ही ख़त्म हो जाता है। जितनी जल्दी आप शॉक से उबर कर हॉस्पिटल की रूटीन से खुद को सिंक्रोनाइज कर लेते हैं उतना ही अच्छा है।
हॉस्पिटल में सुबह जल्दी होती है।और जगहों का नही पता पर यहां सुबह साढ़े पांच बजे ही हॉस्पिटल स्टॉफ विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी पैरामीटर्स की रिकार्डिंग शुरू कर देता है तो मज़बूरन आपको जागना ही पड़ता है। वैसे तो इस वार्ड में कुल छह क्युबिकल्स में 36 बेड हैं, ऐडमिट होते समय वार्ड में 15 मरीज़ थे। जब 15 पेशेंट्स एक वार्ड में हैं तो टॉयलेट्स लगातार स्वच्छ रह पाना बहुत कठिन होता है। टॉयलेट्स में वही टहलते रहने वाले सज्जन वाश बेसिन के शीशे साफ करते नज़र आये।
"साफ-सफ़ाई रखना मेरी आदत है। घर रहने पर भी सफाई मैं खुद ही करता हूँ। टॉयलेट्स की रेगुलर सफाई बहुत जरूरी होती है। यहां हूँ तो यहां की सफाई करता रह रहा हूँ। "
उन्होंने खुद ही बताया। 
उन्होंने शीशा चमकाने के बाद वाश बेसिन साफ करना शुरू कर दिया।
-पानी की केतली खाली कर के उसमें नया पानी भर लो फिर गरम करो।
हम गरम पानी लेने पहुंचे फिर वे वहां टहलते हुए मिले। 
-एक बार में ज्यादा पानी मत लो ज़रूरत पड़ने पर फिर आके ले लेना।
पानी गर्म होने तक उनसे बात करना हुआ। बात इकतरफा ही थी वही बोल रहे थे, हम सुन रहे थे। 
- दस दिन हो गए हमें यहाँ। डायबिटीज है, ब्लड प्रेशर है और पता नही क्या-क्या है। 69 साल उम्र है। मार्च से बचा रहा हूँ कि इस बीमारी से बचा रहूँ क्योंकि लग रहा था कि अगर मुझे हुई तो फिर ज़िंदा नही बचूंगा।
-जब पॉजिटिव हुआ तो अस्पताल आने का मन नही था लेकिन सब ने कहा कि यही बेहतर है। यहां आ कर लगा कि अच्छा किया कि आ गया। बेहतर ट्रीटमेंट मिल गया। अब देखिए कल सैंपल गया था बस थोड़ी देर में रिपोर्ट आने वाली है नेगटिव हो गए तो फिर शाम तक घर चला जाऊंगा। 
ये अंतिम बार था जब वे नज़र आये।
लंच वितरित हो ही रहा था कि लोगों के कदमों की आवाजें बढ़ गयी। PPE किट पहने हॉस्पिटल स्टाफ के चलने की आवाज अलग ही होती है।
बाहर जा कर देखा तो पता चला कि बगल वाले क्यूबिकल में एक पेशेंट सीरियस हो गया था। पूरे वार्ड का स्टाफ क्यूबिकल में उसके बेड के पास इकट्ठा था। कोई लगातार सीपीआर दे रहा था। वार्ड का स्टाफ तेज तेज बातें करते हुए उस मरीज़ को बचाने की कोशिश कर रहा था।
हमारे क्यूबिकल में उस समय कम मरीज़ थे।
- पता नही क्या हो गया बैठे-बैठे। बस खाना खाने की तैयारी कर रहे थे अचानक पीछे की ओर गिर गए
उस पेशेंट के बगल के बेड का पेशेंट हमारे क्यूबिकल में आ गया। उसने बताया
- शायद अटैक पड़ा होगा। 
-कितनी उम्र होगी
मैंने पूछा
-सत्तर के होने वाले थे। बताते थे। वैसे तो फिट थे दिन भर टहलते रहते थे। सुबह से उठ कर टॉयलेट्स की सफाई करते रहते थे।
हम हैरान रह गए।
-वही जो कुर्ता-पायजामा में घूमते रहते थे।
मन अजीब सा हो उठा। ऐसे कैसे हो सकता है। बिल्कुल चलता फिरता आदमी। 
स्वस्थ-प्रसन्न!
कोई एक घण्टे तक पूरा वार्ड स्टाफ उसे बचाने की कोशिश में जुटा रहा। फिर उसे ICU में भेज दिया गया।
हम सोच रहे थे कि कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट क्या आयी होगी। कोलैप्स करने के पहले उसे पता चला होगा कि नही।
अगले दिन पता चला कि वे नही रहे।
रिपोर्ट फिर से पॉजिटिव ही आयी थी।

रविवार, 20 दिसंबर 2020

कोरोना में मुस्कान!



उस बच्ची का नाम मुस्कान है पर चेहरे पर बस उदासी या आंसू नज़र आते हैं। हॉस्पिटल के रिकार्ड में 15 साल उम्र है पर दिखने में और छोटी लगती है।
पिछले कुछ दिनों से कोरोना से संक्रमित होने के कारण हम SJPGI के राजधानी कोरोना हॉस्पिटल में कोविड वार्ड में ऐडमिट हैं। हमारे क्यूबिकल में वह पांचवीं मरीज है। उसके ऐडमिट होने के बाद डॉक्टरों के राउंड में उनकी आपसी बातचीत में पता चला कि उसका दो वर्षों से SGPGI, लखनऊ से इलाज़ चल रहा है। केस हिस्ट्री में डायबिटीज  शामिल है, नियमित इन्सुलिन लगता है तथा डॉक्टरों की आपसी बातचीत में पता चला कि उन्हें लगता है कि उसे कुछ मानसिक समस्या भी है। 
एक 15 साल से कम उम्र की बच्ची  अगर अपने घर वालों से अलग हॉस्पिटल में अकेली बीमार  पड़ी है तो उसे मानसिक समस्या नही होगी तो क्या होगा।
मुस्कान विपन्न परिवार से है और महोबा की रहने वाली है। घर में दादी का पैर टूटा हुआ है कोई दिखाने वाला वहां नही है। उसके पिता किसी से कर्ज लेकर उसके नियमित इलाज़ के कंसल्टेशन के लिए दिखाने आये थे, यहां वह जांच में कोरोना पॉजिटिव निकल आयी तो हॉस्पिटल में अकेले डाल दी गयी। 
बताती है कि महोबा में 3 बार चेकअप हुआ हर बार निगेटिव आयी यहां टेस्ट हुआ तो पॉजिटिव हो गयी। उसे कोविड के सिम्टम्स तो नही हैं पर लगता है उसकी सीवियर मेडिकल हिस्ट्री के चलते  उसे कोरोना हॉस्पिटल में डाल दिया गया अब  निगेटिव होने के बाद ही अपने परिवार वालों से बात कर पायेगी या मिल पाएगी।
मुस्कान की हालत सोचिये! ऐसी निर्मम बीमारी जो सबसे पहले आपको आपके परिवार से, अपनो से अलग कर देती है। सोचिये कि अपने घर से कोसों दूर   बिल्कुल अज़नबियों के बीच बीमार पड़ी एक बच्ची ! ऐसी स्थिति जिसमें अपनों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, कोई भी व्यक्ति अकेला होगा तो परेशान ही होगा वो तो बस छोटी सी बच्ची है। इसलिए जब वह अचानक फूट फूट कर रोना शुरू करती है तो समझ में नही आता कि क्या कहें।
आज उसके लिए बाहर से कुछ सामान आया। सामान खोल कर देखा तो पिंक कलर की नई चप्पलें थीं। जिन चप्पलों को देखकर सामान्य परिस्थितियों में  वह प्रफुल्लित हो उठती, फूट-फूट कर रोने लगी।
क्या कहें!
(यह पोस्ट कोरोना वार्ड से लिखी गई है)

रविवार, 31 मई 2020

गुमनाम सी मंत्रिपरिषद!


संतोष गंगवार जी बरेली से 2009 को छोड़कर 1989 से लगातार सांसद चुने जा रहे हैं। वे अटल सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कद्दावर भाजपा नेताओं में गिने जाते हैं। हमें हमेशा लगता रहा है कि वर्तमान सरकार में स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री का पद उनके कद और अनुभव के लिहाज़ से कम है। वैसे अन्य तमाम मंत्रियों की तरह वे भी थोड़ा गुमनाम से हो चले हैं तो देश को ये जानकारी न होना कि वे आजकल कौन सा मंत्रालय देख रहे हैं, मंत्री हैं भी या नही या फिर श्रम मंत्री कौन है आश्चर्यजनक नही है।
 भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया राजनैतिक कद, उम्र और अनुभव हर लिहाज से संतोष गंगवार से कमतर ही हैं। गौरव भाटिया और संतोष गंगवार एक ही राज्य से आते हैं
सत्ताधारी दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता को देश के श्रम मंत्री का नाम मालूम न होना यह बताता है कि देश में संवैधानिक संस्थाओं का कितना क्षरण हो चुका है। 
यह क्षरण अचानक नही हुआ है जो लोग देखना चाहते हैं और देखने के बाद समझना भी चाहते हैं और अंत में समझने के बाद स्वीकार करने का साहस रखते हैं उन्हें यह क्षरण लगातार नज़र आ रहा है।

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