शनिवार, 14 दिसंबर 2019

पेरिस में सुबह


पेरिस में उतरने पर पता चला कि बारिश हो रही है। जब लखनऊ से निकले थे तब भी बारिश हो रही थी। अपनी ही एक पुरानी बात याद आ गयी

सफर में बादलों की छांव साथ रहती हैं।

नदियों के वारिस हैं हम, बारिशें साथ रहती हैं।।


एयरपोर्ट से निकलने पर सड़कें धुली धुली सी नज़र आ रही थीं । सड़क के एक तरफ बुझा बुझा से चाँद दिख रहा था और दूसरी तरफ अलसाया सा सूरज जैसे सोच रहा हो कि अभी चाँद गया नही आऊं कि नही। दोनों में एक तरह से शांतिपूर्ण सहअस्तित्व सा नज़र आ रहा था जैसे सूरज बोल रहा हो कि भाई तू अपना टाइम ले ले मैं वेट कर लूंगा। 
सड़के खाली सी दिख रही थीं।
 टूर ऑपरेटर ने बताया कि पेरिस में पेंशन को लेकर हड़ताल चल रही है। 
पेंशन को लेकर हड़ताल सुनते ही सभी के चेहरे पे खुशी की लहर सी आ गयी लेकिन ये बस लहर ही थी जैसे आयी वैसे ही चली गयी। हम भारतीयों के पास रोज़गार, सेवा शर्तों, पेंशन जैसे मुद्दों के लिए टाइम कहाँ । हम लोग तो सदियों के झगड़ों के हिसाब चुकता करने में लगे हैं।
हड़तालें नागरिकों का सरकार के खिलाफ हथियार होती हैं। वैसे सरकारें भी हड़ताल करती हैं लेकिन उसे वे लोग कर्फ्यू कहते हैं। आवाजाही और संचार को ठप्प कर दिया वो कुछ जो सरकार के हाथ में है।
टूर ऑपरेटर के प्रतिनिधि का नाम किरन है। उसने आग्रह  के साथ बताया कि साथ में Mr लगाना है। तबतक लोगों ने किरन को कहीं और जोड़ते हुए उसे शाहरुख खान कहना शुरू कर दिया। अगर हमने किसी का नाम बिगाड़ दिया तो उसका नाम ठीक से याद हो जाएगा।
अब तक सूरज ने अपनी "किरन" बिखेरनी शुरू कर दी थी।
दिन चमक उठा था।
रातभर बारिश से धोकर,
सुबह सूरज से पोंछ दिया
दिन नए शीशे सा चमक रहा था।
हम होटल के सामने उतरे तो ख़ुश्की लिए तेज ठंडी हवाओं ने हमारा स्वागत किया।


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