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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013
शुक्रवार, 9 सितंबर 2011
शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009
हँस पडे मुँह खोल पत्ते....!
चरमराती सुखी डाली,
छोड़ उपवन रोये पत्ते|
जब अधर पर पाँव पड़ते,
कड़-कड़ाते बोले पत्ते|
धरा धीर धर अनमने से,
रोये मन टटोल पत्ते|
चिल-चिलाती धुप तपती,
जल गये हर कोर पत्ते|
वृक्ष की अस्थि ठिठुरती,
देख मातम रोए पत्ते|
फिर पथिक है ढूंढ़ता,
विश्राम के आयाम को|
देख कर परिदृश्य पागल,
हँस पडे मुँह खोल पत्ते|
छोड़ उपवन रोये पत्ते|
जब अधर पर पाँव पड़ते,
कड़-कड़ाते बोले पत्ते|
धरा धीर धर अनमने से,
रोये मन टटोल पत्ते|
चिल-चिलाती धुप तपती,
जल गये हर कोर पत्ते|
वृक्ष की अस्थि ठिठुरती,
देख मातम रोए पत्ते|
फिर पथिक है ढूंढ़ता,
विश्राम के आयाम को|
देख कर परिदृश्य पागल,
हँस पडे मुँह खोल पत्ते|
आपका यायावरी पर स्वागत है
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009
अभी है सवेरा तुम्हारे सफ़र का...!
अभी है सवेरा तुम्हारे सफ़र का,
चलो आसुओं को कफ़न से सजाने
जमी को उठाकर गगन पर बिठाने
सितारों की दूरी न दूरी रहेगी,
नहीं यह आज़ादी अधूरी रहेगी,
नये दीप को आंधिओं में जलाओ,
अंधेरा डगर है, अंधेरे शहर का
अभी है सवेरा तुम्हारे सफ़र का
अडे हैं पहाडों के पत्थर पुराने,
लहू से नहाये हैं इनके घराने,
मगर जिन्दगी जोखिमों की कहानी,
विन्धी-कंटकों में ही खिलती जवानी,
मसल पत्थरों को सृजन रह का कर,
बदलता नहीं ऐसे रुतबा कहर का
अभी है सवेरा तुम्हारे सफ़र का
सुलगती जवानी न चाहे जमाना,
धधकती जवानी से बदले जमाना,
जवानी तूफानों से झुकती नहीं है,
अगर बढ़ गई, तो फिर रूकती नहीं है,
चलो! देश रौशन बनाने चलो फिर,
बचे कोई सोया न प्राणी नगर का
अभी है सवेरा तुम्हारे सफ़र का
वतन में वतन की नीलामी नहीं हो,
किसी को किसी की गुलामी नहीं हो,
नहीं पेट की आग अस्मत उधारे,
नहीं दर्द का राग कोई पुकारे,
बहो! ऐ हवाओं! फिजा मुस्कुराए,
नहीं कोई मौसम बुलाये ज़हर का
अभी है सवेरा तुम्हारे सफ़र का
चलो आसुओं को कफ़न से सजाने
जमी को उठाकर गगन पर बिठाने
सितारों की दूरी न दूरी रहेगी,
नहीं यह आज़ादी अधूरी रहेगी,
नये दीप को आंधिओं में जलाओ,
अंधेरा डगर है, अंधेरे शहर का
अभी है सवेरा तुम्हारे सफ़र का
अडे हैं पहाडों के पत्थर पुराने,
लहू से नहाये हैं इनके घराने,
मगर जिन्दगी जोखिमों की कहानी,
विन्धी-कंटकों में ही खिलती जवानी,
मसल पत्थरों को सृजन रह का कर,
बदलता नहीं ऐसे रुतबा कहर का
अभी है सवेरा तुम्हारे सफ़र का
सुलगती जवानी न चाहे जमाना,
धधकती जवानी से बदले जमाना,
जवानी तूफानों से झुकती नहीं है,
अगर बढ़ गई, तो फिर रूकती नहीं है,
चलो! देश रौशन बनाने चलो फिर,
बचे कोई सोया न प्राणी नगर का
अभी है सवेरा तुम्हारे सफ़र का
वतन में वतन की नीलामी नहीं हो,
किसी को किसी की गुलामी नहीं हो,
नहीं पेट की आग अस्मत उधारे,
नहीं दर्द का राग कोई पुकारे,
बहो! ऐ हवाओं! फिजा मुस्कुराए,
नहीं कोई मौसम बुलाये ज़हर का
अभी है सवेरा तुम्हारे सफ़र का
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