छोड़ उपवन रोये पत्ते|
जब अधर पर पाँव पड़ते,
कड़-कड़ाते बोले पत्ते|
धरा धीर धर अनमने से,
रोये मन टटोल पत्ते|
चिल-चिलाती धुप तपती,
जल गये हर कोर पत्ते|
वृक्ष की अस्थि ठिठुरती,
देख मातम रोए पत्ते|
फिर पथिक है ढूंढ़ता,
विश्राम के आयाम को|
देख कर परिदृश्य पागल,
हँस पडे मुँह खोल पत्ते|
आपका यायावरी पर स्वागत है
बहुत सुन्दर लिखा है।
जवाब देंहटाएंपतझड़ में पत्तों की कविता. स्वागत.
जवाब देंहटाएंफिर पथिक है ढूंढ़ता,
जवाब देंहटाएंविश्राम के आयाम को|
देख कर परिदृश्य पागल,
हँस पडे मुँह खोल पत्ते|
beautiful lines!!!!
यूंही हंसते-हंसवाते रहो।
जवाब देंहटाएंभाव बहुत सुन्दर है!
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गुलाबी कोंपलें
marmik sundar rachana
जवाब देंहटाएंWAAH ! WAAH ! WAAH !
जवाब देंहटाएंAdbhut shabd chayan aur atisundar abhivyakti...Shabd ke maadhyam se aapne to sajeev chitrit kar diya sab....sachmuch patte bolte lage..waah!
bahut bahut sundar kavita...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंइस रचना को आप लोगों के द्वारा दिये सभी उपमाओं का मैं स्वागत करता हूँ, और अपेक्षा करता हूँ कि आपलोगों की सराहना निरंतर मेरे रचनाधर्म को प्रवाह देती रहेंगीं| धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंकविता पढ कर पतझड का एहसास हुआ। रचना सुंदर बन पडी है, बधाई।
जवाब देंहटाएंआजतक पढ़ी बेहतरीन कविताओं में से एक है ये कविता.
जवाब देंहटाएंपढ़ते हुए कुछ ऐसा ही लगा जैसे पहली बार बसंती हवा कविता पढ़ते हुए महसूस हुआ था
बहुत खूब अनुराग!
तस्लीम जी! आपकी सराहना का हृदय से स्वागत करता हूँ! धन्यवाद!
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