शर्म नही आती इन राजनेताओं को अपना राजनैतिक उल्लू सीधा करने में! अपनी मातृ संस्कृति - सभ्यता कीबोली लगाने में! अपनी ओछी महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए धर्म को हथियार बनाने में! देश भक्ति के नाम अपनीग़लत शक्ति की मनमानी करने में! वेश्यावृति करने में, और अपने पुरुषत्व पर! अरे हाँ, मैं भूल गयी थी कि इनकेपास सारी संपत्ति तो है, लेकिन लज़्ज़ा की संपत्ति के मामले में कंगाल हैं! "बोया पेड़ बबुल का तो आम कहाँ से होये?” ये संपत्ति ना उधार ली जा सकती है, ना ही दी जा सकती है। इसे तो अपने बुद्धि विवेक से अर्जित किया जाताहै, और यही परिपक्वता है समाज़ की, राष्ट्र की, व्यक्ति की, और पूरे विश्व की!
अगर उम्र के पड़ाव को पार करने से ही परिपक्वता आती है, तो मुझे खेद है कुछ हिन्दी ब्लॉंगर्स पर जो उम्र के अवसान पर हैं, लेकिन इतना भी संज्ञान नही है कि वो अपने ब्लॉग में क्या और कैसी चीज़ों को तस्वीरों के साथ परोस रहे हैं! वो ये कैसे भूल जाते हैं कि उनकी पीढ़ियाँ भी कल उनका ब्लॉग पढ़ेंगी? कितने शर्मनाक तरीके से पोस्ट लिखे जा रहे हैं, और बहिष्कार कर रहे हैं। बहिष्कार कीजिए! शौक से कीजिए! लेकिन थोड़ा लिहाज़ करना भी ज़रूरी है! कलम में समाज़ को सशक्त बनाने की ताक़त होती है, कृपया राजनेताओं की तरह संस्कृति की बोली मत लगाइए, बल्कि युग निर्माण में सकारात्मक भागीदारी निभाएँ.
"नाच न जाने आँगन टेढ़ा!" अपने व्यक्तित्व का निर्माण तो कर नही सकते, और चले आते हैं राष्ट्र निर्माण का राग अलापने! इन्हें किसने हक़ दिया है क़ानून को अपने हाथ में लेने का? समस्या है तो समाधान भी है, लेकिन ये किसी का अधिकार नही बनता कि वो किसी पर हाथ उठाए। बंदर की तरह उछल कूद करने से अच्छा है कि एक सभ्य इंसान की तरह, सभ्यता की राह पर चलकर भी हालातों को बदला जा सकता है!
मेरी समझ से मुद्दा ये है कि समाज में कुछ ग़लत हो रहा है, और उसमें कैसे बदलाव लाना है इस पर कोई बात नहीहो रही. क्या एक ग़लत कदम को रोकने के लिए फिर दूसरे ग़लत कदम का उठाया जाना ही समस्या का समाधानहै? जिन्हें इस बात का आभास है कि वो समाज़ को एक नयी सकारात्मक दिशा दे सकते हैं, अगर वे समस्या केसमाधान पर पहल कर सकते हैं तो मैं उनके विचारों को आमंत्रित करती हूँ!
नोट: - ।samaylive.com/news/brosis-beaten-up-by-bajrang-dal-activists/608632.html">http://www।samaylive.com/news/brosis-beaten-up-by-bajrang-dal-activists/608632.html
http://rewa.wordpress.com/2009/02/15/padhe-likhe-ko-farsi-kya/
संस्कृति की बोली वही लगाते हैं जिन्हें संस्कृति की समझ नहीं है। अन्यथा संस्कृति संवर्धन की चीज है, खरीदने बेचने की नहीं। यह कोई सामन्त की जागीर भी नहीं है।
जवाब देंहटाएंसब तरह के लोग सब तरह का कुकरहाव कर रहे हैं संस्कृति पर। इतना कह रहे हैं कि सुनाई नहीं पड़ रहा!
जिन लोगों ने ये सोच लिया है की सिर्फ़ और सिर्फ़ वही सही हैं बाकी सब ग़लत उनसे सकारात्मक होने की उम्मीद ही बेकार है . ये ब्लोगर इंडिया टी वी टाइप के लोग हैं
जवाब देंहटाएंलिंक से आपके गुस्से की वाजिब वजह मालूम हुई, मगर आप किन ब्लोगर्स की बात कर रही हैं यह स्पष्ट नहीं हो पाया. अलबत्ता आज जरुरत है कि ऐसे छद्म राष्ट्रवादी संगठनों को स्वीकार्यता न मिलने पाये, अन्यथा ट्रेलर तो देख ही रहे है, कहानी अभी बाकी है.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .
जवाब देंहटाएंबधाई
इस ब्लॉग पर एक नजर डालें "दादी माँ की कहानियाँ "
http://dadimaakikahaniya.blogspot.com/
बहुत ठीक लिखा है आपने, सहमत हूँ !
जवाब देंहटाएंकुछ हैं जिन्हें लड़कियों का ब्लॉग लिखना भी नही भाता
जवाब देंहटाएंआख़िर खुल कर बोल देतीं हैं हम न
इन्हे लड़कियों के ब्लॉग हमेशा छिछोरे दीखते हैं और उनके ब्लॉग पर टिप्पणीं करने वाले पुरूष भी बुरे नजर आते हैं