नोटपैड नामक ब्लॉग पर सुजाता जी ने एक बड़ी ही सार्थक पहल की - बहस का फोकस तय करना । उन्होंने जो कुछ कहा है वह बहुत ही सटीक है मेरा उसे यहाँ दुहराने का कोई मन नही है । एक ही चीज बार बार पढाने से क्या फायदा।
वहीँ से लिंक मिला एक और ब्लॉग का जहाँ निशा के विरोध के तरीके पर सवाल उठाया गया था । सवाल तो वो बहुत से उठाते हैं पर मुझे याद आया की कुछ दिन पहले इन्होने जोरदार ढंग से कमेन्ट मोडरेशन को तानाशाही काप्रतीक बताया था । वो अपने ब्लॉग पर कमेन्ट मोडरेशन नही करते होंगे। पर दूसरों के तरीकों का मोडरेशन करनाचाहते हैं। चाहते हैं की स्त्रियाँ एक सीमा का अनुसरण करें, चाहते हैं की विरोध करना ही है तो उनसे सीख लें ।
भले ही वो विरोध का तरीका वही पुरुषोचित तरीका हो जिसका उन्होंने भी विरोध किया है (?)
शायद उनके लिए कमेन्ट आम आजादी से बड़ी चीज है ।
सुजाता जी ने सही ही कहा है कि बहस का फोकस तय होना चाहिए। मोडरेशन वाली तानाशाही के विरोधी औरउनका समूह इस पूरी चर्चा को हाइजैक करके संस्कृति वगैरह से जोड़ना चाहता हो । जिन्हें महिलाओं के इस विरोधसे परेशानी है उनके पास चारा ही यही है संस्कृति की दुहाई देना , सवाल उठाने वालों पर उँगलियाँ उठाना औरउनकी जानकारियों पर सवाल उठाना ।
बहस का फोकस लगातार शराब , पब, पेज थ्री की और खींचने की कोशिश हो रही है
शायद उन्हें आजादी सहन नही वो भी महिलाओं की ?
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2009/02/blog-post_13.html
जवाब देंहटाएंsamay ho to is link ko bhi daekhae aap ki baat sae sehmati haen
फ़ोकस? हा हा हा हा हा, फ़िलहाल तो सारी तोपें (फ़ोकस) मेरे ऊपर साधी हुई हैं महान नारियों ने(और कुछ पुरुषों ने भी :))… वैसे आपने मॉडरेशन विरोधी के तौर पर मेरा नाम क्यों नहीं लिखा? मैं बुरा नहीं मानता। आप या कोई भी मेरे ब्लॉग़ पर आकर कुछ भी, कैसी भी टिप्पणी कर सकता है, सबका खुले दिल से स्वागत होता है मेरे ब्लॉग पर… बस बेनामी न रहे।
जवाब देंहटाएंक्योंकि वे शराब-विरोधी नहीं,वे स्त्री-विरोधी हैं...
जवाब देंहटाएंhttp://streevimarsh.blogspot.com/2009/02/blog-post_13.html
अब कमेन्ट मोडरेशन पर भी नारी अधिकार की बहस शुरू हो गई!
जवाब देंहटाएंकुछ लोग होते ही ऐसे हैं!
जवाब देंहटाएं