लखनऊ में एक राजनैतिक दल का लोकसभा प्रत्याशी काफ़ी दिनों से जम के प्रचार में जुटा हुआ है । उसके झंडे और बैनर देख कर महीनो से लग रहा है कि लोकसभा चुनाव हफ्ते भर में ही है। पता नही इस तरह पानी की तरह बहाए जा रहे पैसे को चुनाव आयोग उम्मीदवार के चुनाव खर्च में मानेगा या नही । सोचने वाली बात यह है जो चुनाव के एक साल पहले से चुनावी तौर तरीके से प्रचार में पैसा बहा रहा है उसने वो पैसा कमाया कैसे होगा ।
खैर!
दो दिन पहले हम सब्जी खरीद रहे थे तो हमने पाया कि पूरी सब्जी मण्डी में उसी प्रत्याशी के झंडे और बैनर हुए हैं।
हमने सब्जी वाले से पूछा कि बहुत बैनर लगा रखे हैं भाई! तो उसने बताया कि पार्टी वाले दे गए थे तो लगाना मजबूरी है । हमने पूछा कि ऐसी क्या मजबूरी है । तो पास वाले सब्जी वाले ने कहा कि जिसके हाथ में पुलिस है उसके बैनर लगना मजबूरी ही है भैया।
ऐसे चल रहा है उन महोदय का प्रचार
आख़िर डंडे के सहारे ही लगता है झंडा !
जिसका डंडा उसका झंडा .....
जवाब देंहटाएंजय हो नेता जी की.
these political parties are like the ten heads of ravan each doing its bit to tarnish democracy
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर!
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गुलाबी कोंपलें
इसका मतलब तो ये निकलता है कि आप चाहे जिसे जिता लें, डंडा तो जनता पर ही पड़ता है.
जवाब देंहटाएंचोर -चोर मौसेरे भाई जो ठहरे !!
सही कह रहे हैं आप...आख़िर झंडा डंडे के सहारे ही लगता है. छोटी पर सोचने पर मजबूर करने वाली पोस्ट.
जवाब देंहटाएंक्या बात है आजकल लिखना थोड़ा कम हो गया है? रिशेशन ..यहाँ भी?
चुनाव आयोग के डंडे से बचने के लिए अभी ही झंडे लहरा ले रहे हैं ये लोग.लेकिन सब्जी वालों पर पुलिसिया रौब की मज़बूरी दुखद है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .
जवाब देंहटाएंबधाई
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