बाइक जैसे ही धीमी हुई उसे शक हो गया ।
- तुम्हे रास्ता याद है न?
उसकी आवाज से साफ़ था कि उसे लग रहा है कि हम रास्ता भूल गए हैं।
-रास्ता याद तो नही है पर एक निशानी है मोड़ की।
हमने उसे आश्वस्त किया और फ़िर किनारे गौर से देखने लग गए।
- क्या निशानी थी?
हम उसे अनसुना कर के रास्ते के किनारे देखते रहे।
- आख़िर निशानी थी क्या ?
इस बार उसके स्वर झुंझलाहट थी । हमें भी लगा कि बता ही दें उसके बाद जैसा उसे लगे ये उसकी सोच है।
- मोड़ के पास एक कुत्ता लेटा था ।
- क्या? ये भी कोई निशानी हुई? तुम्हे कोई बोर्ड, कोई और निशानी नही मिल पायी?
- हमें कुत्ता दिखा तो वो निशानी हमने मान ली । कुत्ता बड़े आराम से लेटा था ।
आगे एक मोड़ के पास पहुँच कर हमने हल्का सा ब्रेक लिया और मोड़ पर बाइक घुमा ली ।
- कुता?
- दरअसल जब हम मुडे तो आगे दो कुत्तों ने लड़ना शुरू किया था । तुम्हे तो पता ही है कि जब कुत्ते लड़ते हैं तो आसपास के सारे कुत्ते वहीँ पहुँच जाते हैं । ये हमारा वाला कुत्ता भी वहीँ चला गया होगा।
- तो तुम किस आधार पर इधर मुड गए ?
- तुम सवाल बहुत पूँछते हो। अच्छा देखो कभी भी जब कोई कुत्ता बैठता है कहीं तो वहां थोडी मिटटी हटाता है जबवो उठ जाता है तो वहाँ एक हल्का सा गड्ढा सा रहता है । इस मोड़ पारा हमारे उस कुत्ते ने भी गड्ढा छोड़ा हुआ था ।बस वही देख कर हम मुड गए ।
अब वो बिल्कुल चिढा हुआ था।
- तुम कभी कोई सही लोंजिक क्यों नही इस्तेमाल कर सकते । उस मोड़ पर एक ट्रांसफार्मर था । आगे एक जूस का ठेला था। तुम्हे ये सब छोड़ कर वहीँ कुत्ता ही नजर आया था?
- यार कुत्ता ही नजर आया तो क्या किया जाय? अब देखो हम सही रास्ते पर आ गए हैं यहाँ आगे ही उसका घर है। क्यों न चाय पी लें।
उसके मौन का मतलब उसकी सहमति से लिया हमने । आगे चाय की दो झुग्गीनुमा दुकाने थीं। उनके बीच में बाइक रोक ली।
वो जारी था।
- चाहे हम सही दिशा में ही आ गए पर ये ग़लत लोंजिक बार बार नही चलते। तुम्हे अपने सोचने के तरीके में बदलाव लाना चाहिए। अब वही दूकान क्यों?
दूकान पर ज्यादा लोग थे चाय पी रहे थे अगली दूकान पर दो लोग थे उनके हाथ में चाय नही थी।
- देखो पीछे वाली दूकान पर चाय बनी हुई है और लोग पी रहे हैं। हम पहुँचते हैं तो हमें भी वही चाय पकडा देगा जो पहले से बनी है और आगे वाली दूकान पर उन दो लोगों को चाय अभी भी नही मिली है मतलब अभी वो चाय बना ही रहा है । हमें बिना बकवास किए ताजा बनी चाय मिलेगी । तुम्हे तो पता ही है कि अगर चाय पहले से बनी है तो चाय वाले ताजा चाय बनने से पहले कितनी बहस कर डालते हैं।
अब उसके चेहरे पर संतोष था ।
- अब ये होता है सही लोंजिक । ऐसा नही है कि तुम सही लोंजिक इस्तेमाल करना नही जाने पर उल्टे सीधे लोंजिक ले आते हो जिससे हमें गुस्सा लगती है।
अपनी तारीफ, थोडी ही सही अच्छी लगी।
- यार इसमे ग़लत सही लोंजिक क्या! जूस का ठेला देखा होता तब भी यहीं पहुँचते , ट्रांसफार्मर देखा होता तब भी यहीं पहुँचते और कुत्ता देखा तब भी यहीं पहुंचे। मतलब पहुँचने से है या निशानी से?
- लेकिन वहाँ कुत्ता था ये कौन सी निशानी हुई भला?
चाय वाला चाय छान रहा था । उसमे से भाप निकल रही थी हम उसे देखने में बिजी हो गए । चाय की महक वाकई शानदार थी।
अब चाय छन चुकी थी । चाय वाला उसे गिलास में पलट कर ला रहा था। अब हमने उसकी आंखों में झांका और उसे चिढाने के लहजे में मुस्कुरा कर कहा
- तुमने वो कुत्ता नही देखा था वो बहुत शानदार लग रहा था सोते हुए।
वो गुस्से में कुछ कहने को ही था कि हमने उसकी तरफ़ चाय का गिलास बढ़ा दिया ।
- तुम्हे रास्ता याद है न?
उसकी आवाज से साफ़ था कि उसे लग रहा है कि हम रास्ता भूल गए हैं।
-रास्ता याद तो नही है पर एक निशानी है मोड़ की।
हमने उसे आश्वस्त किया और फ़िर किनारे गौर से देखने लग गए।
- क्या निशानी थी?
हम उसे अनसुना कर के रास्ते के किनारे देखते रहे।
- आख़िर निशानी थी क्या ?
इस बार उसके स्वर झुंझलाहट थी । हमें भी लगा कि बता ही दें उसके बाद जैसा उसे लगे ये उसकी सोच है।
- मोड़ के पास एक कुत्ता लेटा था ।
- क्या? ये भी कोई निशानी हुई? तुम्हे कोई बोर्ड, कोई और निशानी नही मिल पायी?
- हमें कुत्ता दिखा तो वो निशानी हमने मान ली । कुत्ता बड़े आराम से लेटा था ।
आगे एक मोड़ के पास पहुँच कर हमने हल्का सा ब्रेक लिया और मोड़ पर बाइक घुमा ली ।
- कुता?
- दरअसल जब हम मुडे तो आगे दो कुत्तों ने लड़ना शुरू किया था । तुम्हे तो पता ही है कि जब कुत्ते लड़ते हैं तो आसपास के सारे कुत्ते वहीँ पहुँच जाते हैं । ये हमारा वाला कुत्ता भी वहीँ चला गया होगा।
- तो तुम किस आधार पर इधर मुड गए ?
- तुम सवाल बहुत पूँछते हो। अच्छा देखो कभी भी जब कोई कुत्ता बैठता है कहीं तो वहां थोडी मिटटी हटाता है जबवो उठ जाता है तो वहाँ एक हल्का सा गड्ढा सा रहता है । इस मोड़ पारा हमारे उस कुत्ते ने भी गड्ढा छोड़ा हुआ था ।बस वही देख कर हम मुड गए ।
अब वो बिल्कुल चिढा हुआ था।
- तुम कभी कोई सही लोंजिक क्यों नही इस्तेमाल कर सकते । उस मोड़ पर एक ट्रांसफार्मर था । आगे एक जूस का ठेला था। तुम्हे ये सब छोड़ कर वहीँ कुत्ता ही नजर आया था?
- यार कुत्ता ही नजर आया तो क्या किया जाय? अब देखो हम सही रास्ते पर आ गए हैं यहाँ आगे ही उसका घर है। क्यों न चाय पी लें।
उसके मौन का मतलब उसकी सहमति से लिया हमने । आगे चाय की दो झुग्गीनुमा दुकाने थीं। उनके बीच में बाइक रोक ली।
वो जारी था।
- चाहे हम सही दिशा में ही आ गए पर ये ग़लत लोंजिक बार बार नही चलते। तुम्हे अपने सोचने के तरीके में बदलाव लाना चाहिए। अब वही दूकान क्यों?
दूकान पर ज्यादा लोग थे चाय पी रहे थे अगली दूकान पर दो लोग थे उनके हाथ में चाय नही थी।
- देखो पीछे वाली दूकान पर चाय बनी हुई है और लोग पी रहे हैं। हम पहुँचते हैं तो हमें भी वही चाय पकडा देगा जो पहले से बनी है और आगे वाली दूकान पर उन दो लोगों को चाय अभी भी नही मिली है मतलब अभी वो चाय बना ही रहा है । हमें बिना बकवास किए ताजा बनी चाय मिलेगी । तुम्हे तो पता ही है कि अगर चाय पहले से बनी है तो चाय वाले ताजा चाय बनने से पहले कितनी बहस कर डालते हैं।
अब उसके चेहरे पर संतोष था ।
- अब ये होता है सही लोंजिक । ऐसा नही है कि तुम सही लोंजिक इस्तेमाल करना नही जाने पर उल्टे सीधे लोंजिक ले आते हो जिससे हमें गुस्सा लगती है।
अपनी तारीफ, थोडी ही सही अच्छी लगी।
- यार इसमे ग़लत सही लोंजिक क्या! जूस का ठेला देखा होता तब भी यहीं पहुँचते , ट्रांसफार्मर देखा होता तब भी यहीं पहुँचते और कुत्ता देखा तब भी यहीं पहुंचे। मतलब पहुँचने से है या निशानी से?
- लेकिन वहाँ कुत्ता था ये कौन सी निशानी हुई भला?
चाय वाला चाय छान रहा था । उसमे से भाप निकल रही थी हम उसे देखने में बिजी हो गए । चाय की महक वाकई शानदार थी।
अब चाय छन चुकी थी । चाय वाला उसे गिलास में पलट कर ला रहा था। अब हमने उसकी आंखों में झांका और उसे चिढाने के लहजे में मुस्कुरा कर कहा
- तुमने वो कुत्ता नही देखा था वो बहुत शानदार लग रहा था सोते हुए।
वो गुस्से में कुछ कहने को ही था कि हमने उसकी तरफ़ चाय का गिलास बढ़ा दिया ।
बहुत रोचक पोस्ट लिखी है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार किस्सा! आवारा कुत्तों को किसी काम में लाकर आपने न सिर्फ़ मुझे बल्कि मेनका गांधीजी को खुश किया है! व्यंग्य काबिले तारीफ़ है॥
जवाब देंहटाएंबड़ा मजेदार तरीका है कहानी कहने का...और किस्सा भी क्या...निशान में कुत्ता...इससे ये पता चलता है की आप चीज़ों को कितने गौर से देखते हैं, अब भला कुत्ते वाला गड्ढा देख कर मुड़ना कोई आसान काम तो है नहीं. :)
जवाब देंहटाएंलॉजिक एक तरफ, कुत्तवा का फोटो शानदार है। सड़क का है पर रोयें झड़ नहीं रहे और लगता है किलनी भी नहीं पड़ीं। तभी मजे से सो रहा है।
जवाब देंहटाएंएक बार कुत्ते का निशाँ मिल गया तो वो सही लाजिक तो नही ही हुआ अब तुम चाहे जितनी तारीफ़ करो ख़ुद की पर सच तो यही है की कुत्ते की निशानी ग़लत ही थी
जवाब देंहटाएंअब ये मत कहना की ठेला आगे चला जाता या फ़िर ट्रांसफार्मर गायब हो जाता तो?
ये ब्लोगर छाप बीमारी है की जो देखा लिख डाला
है की नही
ज्ञान अंकल वो सो न रहा होता तो फोटो खींचते समय रौशन को काट खाता तब ये लिखते उसकी निशानी और पेश करते लाजिक मै भी देखती
जवाब देंहटाएंरुपाली तुम्हारे गुस्से से मुझे ऐसा क्यों लग रहा है की तुम भी किसी ऐसे ग़लत लाजिक से चिढी हो
जवाब देंहटाएंवैसे ग़लत लाजिक से चिढ़ना ग़लत नही है
कुत्ता फोटो में बहुत मस्त हो कर सो रहा है जैसा ज्ञान जी ने ऊपर बताया रोएँ नही झड़ रहे हैं और किलनी की भी समस्या नही है इस कुत्ते को
पर इसकी निजता का उल्लंघन हुआ ये की कुत्ते की फोटो सोते हुए खींच कर ब्लॉग पर डाल दी
उममें है रौशन तुमने उसकी परमिशन ली होगी नही तो कानूनी कार्यवाही के लिए तैयार हो जाओ
कोई और नही तो रुपाली ही मेनका गाँधी को ख़बर कर देंगी
कुत्ता तो बड़ा मस्त हो कर सो रहा है.अच्छा चित्र लगया है.
जवाब देंहटाएंजर्बदस्त रचना है.................
जवाब देंहटाएंतुमने वो कुता नहीं देखा.....सोते हुए बड़ा शानदार लग रहा था..................
जवाब देंहटाएंबस जो भी दिल को भा जाए ..वो ही लाजिक है.....
कितनी शानदार है ये आखिरी की लाइन ....वल्लाह मजा आ गया...........
कुत्ता तो खैर वाकई बहुत मस्त सो रहा है, मगर हमें सोना नही चाहिए ... थोड़ा वक्त निकालिए -- दहेज़ उत्पीडन कानून के आड़ में जो लोग हरेस्मेंट कर रहे है उनकी खैर ख़बर ली जाए ........ज़्यादा जानकारी के लिए आप आमंत्रित है हमारे ब्लॉग पर............
जवाब देंहटाएंbahut hi khoobsoorat rachna hai...achhe dhang se pesh kiya hai, aap badhai ke patr hain....
जवाब देंहटाएंthe light banter was very interesting n enjoyable !!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
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