शशि, चन्द्र विलोचन नयन, मुख|
तोहे पदम् कदम मोहे भावत है||
चर-चारू कंद बदन तोरा|
मन मोरा हर्षय लावत है||
हरणी सी चलत इत-उत ठुमकत|
तोहे देख मोरा मन गावत है||
तोरे नयन कटारी चलत जिधर|
नव किरण कुञ्ज फैलावत है||
चलत पवन, पट सटत बदन|
मन-मन पवन कछु पावत है||
तोरे लट उलझे घट-पनघट|
बदरी घट-घट बरखावत है||
तोहे पायल की खन-खन,सुनी-सुनी|
रज,राग,रंग तंग ढ़ावत है||
चल सजनी आगे-आगे|
"अनुराग" पीछे से आवत है||
वाह ! अतिसुन्दर शब्द चयन और भाव निरूपण......बहुत ही सुन्दर मनोहारी कविता......अद्भुत लेखन......पढाने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना . पढ़कर आनंद आ गया . बधाई
जवाब देंहटाएंबस इतना ही - वाह वाह वाह !!!!
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