रविवार, 23 नवंबर 2014

मंदिर , बाघ और स्टेशन @दुधवा नेशनल पार्क

एक बड़ा शहर और उसमें एक जानवर का जीवन 
एक बड़ा जंगल और उसमे इंसानी रिहाइश !
क्या फर्क हो सकता है ? 
शहर में जानवर पूरी तरह से असुरक्षित है लेकिन जंगल में इंसान अपनी रिहाइश बना लेता है। इसका कारण इंसान की ताकत नहीं है बल्कि यह सत्य है कि जीवधारियों की तमाम प्रजातियों में से इंसान ही ऐसा है जो अपने साथ किसी को जीते नहीं देख सकता । 
एक बाघ , एक शेर, एक हाथी या और किसी भी जानवर को एक कारण चाहिए होता है अगले जानवर या इंसान पर हमला करने के लिए भले ही वह कारण भूख क्यों न हो। 
पर इंसान के लिए हमले का सबसे बड़ा कारण अगले की उपस्थिति मात्र है। 
इंसान के मन में बैठी असुरक्षा की भावना अन्य सभी जानवरों की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाती है। 
दुधवा नेशनल पार्क के बीच में स्थित सोनारीपुर रेलवे स्टेशन नानपारा (बहराइच) और पलिया कलाँ (खीरी लखीमपुर ) के बीच एक छोटा सा स्टेशन हैं। स्टेशन के मुख्य प्रवेश द्वार पर यह फूस की टटिया लगा दी गयी है। दूसरे जानवरों को रोकने के लिए ।

ठेला देख के लगता है कि लोगबाग इकट्ठा होते होंगे स्टेशन पर । आसपास कुछ एक गाँव हैं। जहां थारू रहते हैं। फोटो में दिख रहा बच्चा फोटो खिंचवाने के लिए तो सहमत था पर और कोई बात नहीं करना चाहता था। सोनारी पुर रेलवे स्टेशन पर कोई 6-7 ट्रेने रुकती हैं। शायद सभी पैसेंजर ट्रेने हैं। रुकने वाली आखिरी ट्रेन साढ़े छह बजे के आस पास से गुजरती है। 
यह शाम के कोई साढ़े पाँच का समय है । हम वापस जा रहे थे तो एक ट्रेन जा रही थी ट्रेन रुकने वाली थी या नहीं यह तो नहीं पता पर अगर रुकती तो स्टेशन से ट्रेन पर बैठने के लिए अगर कोई रहा होगा तो यह बच्चा । अब शाम के साढ़े पाँच बजे कहीं जाने का मतलब नहीं दिखता  तो यह अंदाजा लगता है कि बच्चा स्टेशन पर ही रह रहा होगा । 

स्टेशन के बगल में यह मंदिर था । ये श्री मचाली दास बाबा कहीं पूर्वाञ्चल के रहने वाले थे और सपत्नीक यहाँ रह रहे थे। कई थारू मंदिर दर्शन के लिए बैलगाड़ियों से आए थे। हो सकता है कि लोगों की भीड़ होने पर बाघ या अन्य जानवर हमला नहीं करते। लोग कोई तीन गाड़ियों से आए थे और चन्दन चौकी के थे। चन्दन चौकी उस जगह से कुछ दूरी पर है।


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