जनरल सिंह के उम्र विवाद को लेकर सर्वोच्च न्यायालय जाने के बाद सियासी हलकों में तूफ़ान उठना स्वाभाविक था पर देखा यह जाना चाहिए कि यह मामला कहाँ तक जाता है.
जनरल सिंह ने याचिका दायर करते समय दलील दी कि यह उनके व्यक्तिगत सम्मान और निष्ठा से जुड़ा मामला है और इसका सैन्यबलों के मनोबल पर कोई असर नहीं पडेगा . प्रश्न उठता है कि जब यह उनके व्यक्तिगत सम्मान और निष्ठा का मामला है तो फिर तेरह लाख सैनिकों के सम्मान को क्यों मुद्दा बनाया जा रहा है.
जिन्हें भी सरकारी सेवाओं और उसमे पदोन्नति से जुड़े मामलों की जानकारी होगी वह जानते होंगे कि आधिकारिक रिकार्ड में जो जन्मतिथि होती है उसका सेवा के दौरान पदोन्नति आदि पर सीधा असर पड़ता है . यदि आधिकारिक रिकार्ड में जनरल सिंह की जन्मतिथि उन्नीस सौ इक्यावन रही है तो उन्हें उस हिसाब से पदोन्नति मिलती रही होगी और अगर यह उन्नीस सौ पचास है तो पदोन्नति के मामलों में यह निर्णायक रही होगी. अब अगर रक्षा मंत्रालय यह मान रहा है कि रिकार्ड्स में यह उन्नीस सौ पचास है तो जाहिर है सेनाप्रमुख समेत तमाम पदोन्नतियों में उन्हें इसका लाभ मिलता रहा होगा क्यों कि पदोन्नति के समय अधिक उम्र वालों को इसका लाभ मिलता है.
क्या जनरल सिंह पदोन्नति लेते समय यह नहीं जानते रहे हैं? क्या यह उचित है कि पदोन्नति के लिए वह अलग जन्मतिथि माने और सेवानिवृत्ति के लिए अलग?
दूसरा मुद्दा है यु पी एस सी का राष्ट्रीय रक्षा अकादमी का फार्म भरते समय दी जाने वाली जन्मतिथि?
क्या जनरल सिंह ने फार्म भरते समय गलत जन्मतिथि दी? जनरल सिंह की दलील है कि यह लिपिकीय गलती से हुआ होगा . क्या फार्म यु पी एस सी के लिपिक भरते हैं ?
यह मानना कि जनरल सिंह सिर्फ एक वर्ष और सेवा में रहने के लिए जन्मतिथि विवाद को लेकर इतने गंभीर हो गए हैं सही नहीं लगता . जनरल सिंह जिस पद पर हैं और अपने जीवन के जिस मुकाम पर हैं वहाँ एक वर्ष और सेवा में रहने की बात बहुत छोटी है . तो फिर मुद्दा क्या है?
क्या यह सिर्फ खुद को सही करने की जिद है? अगर यह बस सम्मान और निष्ठा का मामला है तो जनरल सिंह इसे इतना इतना तूल देकर स्वयं उसे खोते जा रहे हैं .
परन्तु क्या मामला सिर्फ इतना छोटा है? आशा की जानी चाहिए कि जनरल के इस कदम के पीछे और कोई मामला या संगठन न हो क्योंकि ऐसी स्थिति जितनी घातक हो सकती है इसका अंदाजा लगा पाना कठिन है .
जनरल सिंह ने याचिका दायर करते समय दलील दी कि यह उनके व्यक्तिगत सम्मान और निष्ठा से जुड़ा मामला है और इसका सैन्यबलों के मनोबल पर कोई असर नहीं पडेगा . प्रश्न उठता है कि जब यह उनके व्यक्तिगत सम्मान और निष्ठा का मामला है तो फिर तेरह लाख सैनिकों के सम्मान को क्यों मुद्दा बनाया जा रहा है.
जिन्हें भी सरकारी सेवाओं और उसमे पदोन्नति से जुड़े मामलों की जानकारी होगी वह जानते होंगे कि आधिकारिक रिकार्ड में जो जन्मतिथि होती है उसका सेवा के दौरान पदोन्नति आदि पर सीधा असर पड़ता है . यदि आधिकारिक रिकार्ड में जनरल सिंह की जन्मतिथि उन्नीस सौ इक्यावन रही है तो उन्हें उस हिसाब से पदोन्नति मिलती रही होगी और अगर यह उन्नीस सौ पचास है तो पदोन्नति के मामलों में यह निर्णायक रही होगी. अब अगर रक्षा मंत्रालय यह मान रहा है कि रिकार्ड्स में यह उन्नीस सौ पचास है तो जाहिर है सेनाप्रमुख समेत तमाम पदोन्नतियों में उन्हें इसका लाभ मिलता रहा होगा क्यों कि पदोन्नति के समय अधिक उम्र वालों को इसका लाभ मिलता है.
क्या जनरल सिंह पदोन्नति लेते समय यह नहीं जानते रहे हैं? क्या यह उचित है कि पदोन्नति के लिए वह अलग जन्मतिथि माने और सेवानिवृत्ति के लिए अलग?
दूसरा मुद्दा है यु पी एस सी का राष्ट्रीय रक्षा अकादमी का फार्म भरते समय दी जाने वाली जन्मतिथि?
क्या जनरल सिंह ने फार्म भरते समय गलत जन्मतिथि दी? जनरल सिंह की दलील है कि यह लिपिकीय गलती से हुआ होगा . क्या फार्म यु पी एस सी के लिपिक भरते हैं ?
यह मानना कि जनरल सिंह सिर्फ एक वर्ष और सेवा में रहने के लिए जन्मतिथि विवाद को लेकर इतने गंभीर हो गए हैं सही नहीं लगता . जनरल सिंह जिस पद पर हैं और अपने जीवन के जिस मुकाम पर हैं वहाँ एक वर्ष और सेवा में रहने की बात बहुत छोटी है . तो फिर मुद्दा क्या है?
क्या यह सिर्फ खुद को सही करने की जिद है? अगर यह बस सम्मान और निष्ठा का मामला है तो जनरल सिंह इसे इतना इतना तूल देकर स्वयं उसे खोते जा रहे हैं .
परन्तु क्या मामला सिर्फ इतना छोटा है? आशा की जानी चाहिए कि जनरल के इस कदम के पीछे और कोई मामला या संगठन न हो क्योंकि ऐसी स्थिति जितनी घातक हो सकती है इसका अंदाजा लगा पाना कठिन है .