मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

युद्धोन्मादी समाज में शान्ति की वकालत


बॉर्डर फिल्म के अंत में एक गाना था "मेरे दुश्मन , मेरे भाई"
युद्ध पर बनी इस फिल्म में ये गाना युद्ध की खिलाफत करता हुआ शान्ति की वकालत करता है। उस समय देश देशभक्ति को लेकर इतना संवेदनशील नहीं हुआ था   नहीं तो लोग इस गाने के रचयिता, गायक और फिल्म के निर्माताओं का विरोध करते, अपनी (घृणित) मानसिकताओं का प्रदर्शन करते।  उस समय  लोग इस फिल्म को देखने को ही देशभक्ति मानते थे. 

देश के एक प्रधानमंत्री  बस  जिसे सदा-ए -सरहद का  नाम दिया था उसे लेकर पाकिस्तान गए।  उद्देश्य था जंग के खिलाफ एक मज़बूत  पहल , शान्ति  की वकालत।  शायद लोग जानते नहीं थे  कि   पाकिस्तान  इस देश का दुश्मन है  नहीं तो प्रधानमंत्री  जी लाहौर  चले  तो गए थे पर वापस नहीं आ पाते।  


एक और देशभक्त प्रधानमंत्री अभी कुछ दिनों  अचानक शान्ति और प्रेम की पहल  के साथ  पकिस्तान पहुँच गए।  शायद वे प्रधानमंत्री थे एक मामूली छात्र नही । बड़े लोग कुछ भी कर सकते हैं कभी शांति की वकालत कभी युद्ध का उद्घोष । तोहफों की अदला-बदली या सीमाओं पर गोलियों की अदलाबदली । हमें तो बस वे जो कहें उसे करते जाना है । जब जंग कहें तो सीना तान कर सीमा पर खड़े हो जाना और अपने सगे संबंधियों की मौत को शहादत कह कर गर्व करना और जब शांति कहें तो फूल माला लेकर हुक्मरानों के मेहमानों का स्वागत करने  पहुँच जाना हैं । 
अभी कुछ दिन पहले संसद में एक  निजी विधेयक पर सरकार ने बताया कि पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित नही किया जा सकता ।  गृह मंत्रालय ने इस विधेयक को लेकर अपने विरोध के बारे में राज्य सभा सचिवालय को सूचित कर दिया है. मंत्रालय ने कहा कि ऐसा कदम अंतरराष्ट्रीय संबंधों में 'बाधा' डालने वाले हैं। सरकार तो सरकार होती है उसे कोई कुछ क्यों कहेगा 
हम आवाम हैं हुक्मरान नही ये बात एक बच्ची भूल गई । कोई बीस साल की एक बच्ची ये समझने में तो कामयाब हो गई की उसके पिता की मौत की ज़िम्मेदारी उस सदा चलने वाले युद्ध की है जिसका शिकार अभी और भी न जाने कितने मासूमों को होना है वो यह तो समझ गयी कि युद्ध का ये दौर खत्म हुए बिना देश का हर परिवार अपने सगे संबंधियों को खोने के लिए अभिशप्त है लेकिन वो ये नही समझ सकी कि देशभक्ति के इस दौर में शांति की वकालत आम शहरियों को नही करनी है वो तो हुक्मरानों का डोमेन है। 


जिन घरों के लोग इस उन्माद की भेंट चढ़ते हैं उन्हे शायद कभी युद्ध पसंद न हो लेकिन वे लोग जिन्हें सीमा का "स" भी नही पता होता उनके अंदर देशप्रेम हिलोरें मार रहा होता है। वे युद्धोन्माद के गीत रचते हैं , शहीदों पर गर्व करते हुए सीना तान कर देशभक्ति के नारे गढ़ते हैं और पीठ फिरते ही उनही शहीदों के बच्चों को उनकी औकात बताने लग जाते हैं कि तुम सिर्फ शहादत के लिए हो खुद को अभिव्यक्त करने के लिए नही। 
गुरुमेहर कौर इन प्लेकार्ड्स ने और इसपर आई प्रतिक्रियाओं ने काफी कुछ ऐसा प्रकट किया है जिसे हम सभी को समझने की जरूरत है। तुम से बच्चे हर समाज के लिए  रौशनी की किरण होते हैं। 
अंत में 
प्रिय सरकार ,
सोशल मीडिया पर सदा सर्वदा मौजूद रहने के बाद भी क्या आपके किसी भी सदस्य को कभी यह महसूस नही हुआ कि एक बच्ची की का ये वीडियो देशप्रेम , शांति और समझ की वकालत कर रहा है । क्या आपको कभी ये नही लगा कि ये बच्ची वही कह रही है जो सरकारें अक्सर कहती हैं । 
चलिये  नही लगा तो नही सही पर क्या आपको कभी नही लगा कि इसपर आने वाली कुत्सित प्रतिक्रियाएँ भर्त्सना के लायक हैं? 
नही लगा तो आप नुमाइंदे नही शासक हैं 
-आपकी आवाम 

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

आजादी

सीखना है चुप रहना 
या जारी रखनी है आवाज उठाने की आजादी 

सीखना है सर झुका के रखना 
या जारी रखनी है सर उठा के जीने की आजादी 

सीखना है रेंगना 
या जारी रखनी है कुलांचे भरने  की आजादी 

सीखना है दिमाग बंद रखना 
या जारी रखनी है सोचने  की आजादी

भविष्य का फैसला है आज पर टिका है



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