शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

सुभाष बाबू !

आज नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का जन्मदिन है सुभाष चन्द्र बोस उन दो बंगाली विभूतियों में से रहे हैं जिनके व्यक्तित्व और विचारों ने हमेशा से हमें प्रभावित किया है
1897 में कटक जन्मे सुभाष बाबू अपने 14 भाई बहनों में नौवें थेपिता के दबाव के चलते आई सी एस की कठिन और प्रतिष्टापूर्ण परीक्षा महज आठ महीनों के श्रम से उत्तीर्ण करने वाले सुभाष बाबू को देश की आजादी के लिए संघर्ष का रास्ता पसंद था और उन्होंने बिना किसी हिचक के आई सी एस से त्यागपत्र दे दिया1922 में स्वराज पार्टी के बैनर तले कलकत्ता के महापौर बने देशबंधु चितरंजन दास ने उन्हें नगर पालिका का मुख्यकार्यकारी नियुक्त कियासुभाष बाबू की प्रशासनिक क्षमता और राष्ट्रीय सरोकार उनके कार्यकाल में नगर पालिका की कार्यप्रणाली में स्पष्ट देखा जा सकता हैबाद में सुभाष बाबू ख़ुद भी महापौर बनेबाद में अपने कांग्रेस अध्यक्ष के कार्यकाल में उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में राष्टीय योजना समिति की स्थापना कीइसी विचार का प्रतिनिधित्व आजादी के बाद बने योजना आयोग ने कियाइसी के साथ उन्होंने एक विज्ञान परिषद् की भी स्थापना की थी
सुभाष बाबू ने कांग्रेस के अन्दर पूर्ण स्वराज के संकल्प को लेकर जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर युवाओं का नेतृत्व कियायुवा नेताओं का यह समूह समाजवादी विचारों से प्रेरित था और भारत को एक प्रगतिशील रूढियों से मुक्त देश के रूप में देखना चाहता थाउनके उनके साथियों के समाजवादी विचारों का कांग्रेस के अन्दर का दक्षिणपंथी समूह पसंद नही करता थाअपनी बीमारी के समय यूरोप प्रवास में उन्होंने विट्ठल भाई पटेल के साथ काम किया. कांग्रेस के उस समय के नेतृत्व से असंतुष्ट इन नेताओं ने बोस -पटेल विश्लेषण में अपने विचारों को स्पष्ट रूप से रखा. अपनी अस्वस्थता के दौरान नेताजी द्वारा की गई सेवा और उनके विचारों के चलते विट्ठल भाई ने अपनी संपत्ति वसीयत वसीयत द्वारा सुभाषबाबू के नाम करदीविट्ठल भाई के छोटे भाई इस वसीयत से अप्रसन्न थे और उन्होंने मुक़दमे में सुभाषबाबू को पराजित करके विट्ठल भाई की संपत्ति प्राप्त कर ली परन्तु इससे दोनों महत्वपूर्ण और बड़े नेताओं में कटुता गईवस्तुतः पटेल कांग्रेस के दक्षिणपंथी माने जाने वाले नेताओं में से थे और कांग्रेस संगठन पर महत्वपूर्ण प्रभाव रखते थे (आजादी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में उन्होंने जवाहरलाल के उम्मीदवार के विरुद्ध अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी किया था )। गांधी जी की खुली असहमति के बावजूद सुभाष बाबू कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीतने में सफल रहेइसपर कांग्रेस कार्यसमिति के 14 में से 12 सदस्यों ने कार्यसमिति से इस्तीफा दे दिया (सिर्फ़ जवाहरलाल और शरत चन्द्र बोस कार्यसमिति में बने रहे थे। ) कार्यसमिति के विरोध के चलते उन्हें त्यागपत्र देना पडा
नेता जी इस समय अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का लाभ उठा कर भारत को आजादी दिलाने के लिए एक बड़े संघर्ष का आगाज करने के पक्षधर थे परन्तु अधिकतर नेता इस मौके पर सावधानी पूर्ण कदम उठाने के इच्छुक थे
इसी समय नेताजी और उनके लंबे समय तक साथी रहे जवाहरलाल में भी मतभेद हो गएजवाहरलाल मतभेदों के वैयक्तिकरण के ख़िलाफ़ थेउन्होंने सुभाष को लिखा कि चाल इतनी तेज नही हो कि साथी पीछे छूट जाएँउन दोनों में मित्र और धुरी राष्ट्रों को लेकर भी मतभेद रहे
विश्वयद्ध के दौरान सुभाष बाबू ने निष्क्रिय बने रहने से इनकार कर दिया और नजरबंदी से भाग निकले अफगानिस्तान, रूस होते हुए जर्मनी पहुँच कर उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संगठन की स्थापना कीइस दौरान उन्होंने जियाउद्दीन खान और ओरलान्दो मात्सूता नामों से यात्रा कीजर्मनी में हिटलर से मतभेदों और उससे मिली निराशा के चलते वो जापान गए और वहाँ पर आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभालाउन्होंने आजाद हिंद की अंतरिम सरकार का भी गठन किया जिसे धुरी राष्ट्रों से मान्यता मिली थी
आजाद हिंद फौज जापान के सहयोग से भारत की आजादी के लिए संघर्ष छेड़ दियाअपने मतभेदों को किनारे करते हुए नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो के माध्यम से गांधी जी को संबोधित करते हुए जापान के सहयोग से भारत को आजाद कराने की अपनी योजना के बारे में बतायायह वही संबोधन है जिसमे उन्होंने गांधी जी को राष्ट्र पिता कह कर पुकारा (यह उपाधि नेता जी की ही दी हुई है और गांधी जी ने सुभाष को नेता जी की उपाधि दी थी। )। हालांकि नेता जी की योजनायें भारत में पहले ही पहुँच रही थी और गांधी जी के नेतृत्व में एक तबका महसूस कर रहा था कि जापानियों का आगमन भारत के लिए बेहतर हो सकता है
शुरूआती सफलताओं (जिसमें अंडमान निकोबार को जीतना शामिल था ) के बाद मित्र राष्ट्र भारी पड़ने लगे और आजाद हिंद फौज को पीछे हटना पडा18 अगस्त 1945 का नेता जी की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गईयह दुर्घटना और मृत्यु आज भी रहस्यपूर्ण है
आज हमारे लिए बहुत आसान है यह सोचना कि शायद जापानियों की जीत और उनका ताकतवर होना भारत की आजादी के लिए घातक हो सकता था , या फ़िर जापानियों या धुरी राष्ट्रों की मदद लेना ग़लत हो सकता था पर उस समय की परिस्थितियों की देखें तो धुरी राष्ट्रों के उफान के एक समय इक्का-दुक्का नेताओं को छोड़ कर सभी जापान और आजाद हिंद फौज के बढ़ते क़दमों को लेकर आशान्वित थेउस समय के तमाम नेताओं ने अपने हिसाब से चीजों को समझने की कोशिश की और उन्हें जो बेहतर समझ में आया कियाआज यह कहना आसान हो सकता है कि सुभाष ग़लत रास्ते पर निकल चुके थे या गाँधी अनुचित आग्रह कर रहे थे या भगत सिंह और उनके साथी अपनी हिंसा में ग़लत थे, पर हमें लगता है कि यह सभी एक दूसरे के पूरक थेयुवाओं में आत्म बलिदान के उच्च आदर्श जहाँ भगत सिंह और उनके साथियों से मिल रहे थे वहीँ गांधी ने आजादी की लड़ाई को आम आदमी तक पहुँचाया और उसे उससे जोड़ासुभाष ने 1857 के विद्रोह की टूटी कड़ी को जोड़ते हुए एक पूरी पूरी सेना का सिर्फ़ गठन किया बल्कि अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाहियों में जुडाव की एक भावना भरीइसका प्रमाण था कि आजाद हिंद फौज के ट्रायल के समय उनके समर्थन में हो रही सभाओं में सैनिक वर्दी में शामिल हो रहे थे
आख़िर सेना ही तो अंग्रेजों का अन्तिम दुर्ग था! सुभाष की सफलता की कहानी अंडमान और निकोबार जीतने या सेना गठित करने में नही थीउनकी सफलता यहाँ हिन्दुस्तान में उस भावना की थी जो उन्होंने जगाई थीउनकी सफलता उन तमाम आजाद हिंद सैनिकों में थी जो अंग्रेजो द्वारा बंदी बना कर लाये गए थे और उनपर मुक़दमे चल रहे थेवो लाये थे अपने साथ अदम्य इच्छशक्ति की वो कहानियाँ जो नौसेना के विद्रोह के साथ मिलकर अंग्रेजी साम्राज्य के ताबूत में अन्तिम कील साबित हुयी

सुभाष बचपन से हमारे आदर्शों में रहे हैंसमय के साथ इतिहास के अलग अलग विन्दुओं के अध्ययन में हमने उनकी कमियों और भूलों को भी देखा और समझा इसके बावजूद उनका स्थान अभी भी वही है जहाँ तब था जब उनके साहसिक व्यक्तित्व को पहली बार जाना था
महान लोगों की गलतियों और कमियों के बारे में जानना जरूरी है यह कहने के लिए नही कि ओह यह ऐसे निकले, उन्हें गाली देने के लिए भी नही, बल्कि यह समझने के लिए कि हम उनसे सीख लें यह समझने के लिए कि आख़िर वो इंसान थे

सुभाष बाबू के जन्मदिन पर

सुभाष से जुड़ी हुई यह कविता हमने छठी या सातवी में पढ़ी थी तब से याद है और आजभी ह्रदय मेंउत्साह का संचार करती है
यह गोपाल प्रसाद व्यास की कविता है , कविता का नाम है ख़ूनी हस्ताक्षर






ख़ूनी हस्ताक्षर

वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें जीवन, न रवानी है!

जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं, पानी है!


उस दिन लोगों ने सही-सही, खूं की कीमत पहचानी थी।

जिस दिन सुभाष ने बर्मा में, मॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, स्‍वतंत्रता की खातिर, बलिदान तुम्‍हें करना होगा।

तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा।


आज़ादी के चरणें में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी।

वह सुनो, तुम्‍हारे शीशों के, फूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का इतिहास कहीं काली स्याही लिख पाती है

इसको लिखने के लिए खूनकी नदी बहाई जाती है।


ये कहते-कहते वक्‍ता की, ऑंखें में खून उतर आया!

मुख रक्‍त-वर्ण हो दमक उठा, दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके, वे बोले,”रक्‍त मुझे देना।

इसके बदले भारत की, आज़ादी तुम मुझसे लेना।”


हो गई उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे।

स्‍वर इनकलाब के नारों के, कोसों तक छाए जाते थे।

“हम देंगे-देंगे खून”, शब्‍द बस यही सुनाई देते थे।

रण में जाने को युवक खड़े, तैयार दिखाई देते थे।


बोले सुभाष,” इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है।

लो, यह कागज़, कौन यहॉं, आकर हस्‍ताक्षर करता है?

इसको भरनेवाले जन को, सर्वस्‍व-समर्पण करना है।

अपना तन-मन-धन-जन-जीवन, माता को अर्पण करना है।


पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है।

इस पर तुमको अपने तन का, कुछ उज्‍जवल रक्‍त गिराना है!

वह आगे आए जिसके तन में, भारतीय ख़ूँ बहता हो।

वह आगे आए जो अपने को, हिंदुस्‍तानी कहता हो!


वह आगे आए, जो इस पर, खूनी हस्‍ताक्षर करता हो!

मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए, जो इसको हँसकर लेता हो!”

सारी जनता हुंकार उठी- हम आते हैं, हम आते हैं!

माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्‍त चढ़ाते हैं!


साहस से बढ़े युबक उस दिन, देखा, बढ़ते ही आते थे!

चाकू-छुरी कटारियों से, वे अपना रक्‍त गिराते थे!

फिर उस रक्‍त की स्‍याही में, वे अपनी कलम डुबाते थे!

आज़ादी के परवाने पर, हस्‍ताक्षर करते जाते थे!


उस दिन तारों ने देखा था, हिंदुस्‍तानी विश्‍वास नया।

जब लिखा था रणवीरों ने, ख़ूँ से अपना इतिहास नया।


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