हिंसक भीड़ द्वारा संचालित
शासनतंत्र में जीते हम,
आपातकाल के बाद की पीढ़ी के लोग
हैरान होते हैं आज
कि लोकतंत्र,
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और
विचारों की आज़ादी
को बेड़ियां पहनाने की
कोशिशें तब अनुचित मानी जाती थीं
हिंसक भीड़ द्वारा संचालित
शासनतंत्र में जीते हम,
आपातकाल के बाद की पीढ़ी के लोग
हैरान होते हैं आज
कि लोकतंत्र,
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और
विचारों की आज़ादी
को बेड़ियां पहनाने की
कोशिशें तब अनुचित मानी जाती थीं
एक मत के अनुसार 1857 के विद्रोह के लिए जिम्मेदार कारणों में एक कारण कृषकों की बदहाली भी थी आखिर सैनिक सैनिक होने के पहले किसान ही थे सैनिक होते हुए भी किसान थे और सैनिक न रहने की बाद भी किसान ही रहने वाले थे। वर्दी पहन लेने भर से वे अपने समाज से अपनी नियति से और अपने आप से कट जाने वाले नहीं थे।
हम सभी जिनका किसी गाँव से कोई भी सम्बन्ध होता है कुछ होने न होने के साथ किसान भी होते हैं और किसानों को प्रभावित करने वाली हर चीज हमें प्रभावित करती है वर्दी पहने या जीन्स, खेती करें या नौकरी, अपने नाम पर जमीन हो या न हो
फोटो रेजीडेंसी लखनऊ की है जो दुनिया के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के विरुध्द उन्ही वर्दी पहने किसानों के सबसे प्रचंड विद्रोह का एक मजबूत गवाह है। संयोग से फोटो रेजीडेंसी के चर्चयार्ड की है।