शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

डिजिटली बी पी एल होने की व्यथा

रात के एक बजे थे अचानक मोबाइल की एस एम् एस टोन गुहार लगाती है ।
एस एम् एस एक दोस्त का था जो दिल्ली में बैठा हुआ था । अभी थोडी देर पहले तक वो जिद कर रहा था कि ऑनलाइन आओ कुछ बात करनी है। तमाम कोशिशों के बाद भी जब नेट कनेक्ट नही हो पाया तो हमने हथियार डाल दिए और वो मायूस होकर चुप होगया।
यु आर डिजिटली बी पी एल!
एस एम् एस कहता है।
डिजिटली बी पी एल होना आज के युग में एक बड़ी परेशानी की बात हो गई है।
दिल्ली और लखनऊ में रहने वाले के लिए ३जी होना बी पी एल होना है डिजिटली बी पी एल !
देश के जिस हिस्से में आजकल हम हैं वहां पर लोग कई तरह से बी पी एल हैं
२००१ की जनगणना के हिसाब से ५१००० के आस पास की आबादी वाले इस इलाके में करीब १०००० के आस-पास बी पी एल राशन कार्ड हैं। पाँच सदस्यों वाले परिवार का हिसाब लगायें तो कोई पचास हज़ार बी पी एल!
राशन कार्ड में गरीबी जम के झलकती है । कोटेदार के कोई बीस हज़ार रूपये खर्च होते हैं अलग अलग लोगों को खुश करने में। अब इसके बाद उसकी कमाई भी होती होगी। तो फ़िर गरीबी कमाई का अच्छा साधन हुआ। एक बी पी एल परिवार कितने लोगों की गरीबी दूर करता है इसका हिसाब लगाने पर पता चलता है कि बी पी एल होना कितना जरूरी है।
लखनऊ में सामजिक परिवर्तन स्थल से गुजरें तो सामाजिक परिवर्तन नजर आता है । चुंधियाती हुई रौशनी ! पूरा इलाका रात में भी दिन को मात देता हुआ सा लगता है।
लखनऊ से बाहर निकलते ही पता चलता है कि बाकी के इलाके बिजली के हिसाब से बी पी एल हैं। अभी हम जहाँ बैठे हैं वहां हफ्ते-वार बिजली की व्यवस्था चलती है । एक हफ्ते में दिन में लाईट आती है (आती जाती है ) , तो अगले हफ्ते रात में (आती-जाती है )। सामाजिक परिवर्तन लखनऊ में नजर आता है लखनऊ से बाहर गायब हो जाता है।
खैर जो चीजें सिर्फ़ दिखाने की हैं वो लखनऊ और दिल्ली में ही शोभा देती हैं । सामाजिक परिवर्तन दिखाने की ही चीज है शायद होने की नही।
एक इलाके में पहुंचे वहाँ बोर्ड लगा हुआ था -
मोबाइल चार्जिंग - पाँच रूपये मात्र।
बिजली नही पहुँची लेकिन मोबाइल मौजूद है अब मोबाइल है तो चार्ज भी होना होगा। लोग डिजिटल बैकवर्ड नेस से बाहर निकल चुके हैं बिजली आए न आए।
मोबाइल कंपनियाँ नए नए मोबाइल निकाल रही हैं बिजली आए न आए मोबाइल चलता जाए!
उन्हें धंधा चलाना है बिजली आए न आए , उन्हें धंधा चलाना है लोगों की जेब में जितना भी पैसा हो उसे ध्यान में रखते हुए ।

कुछ दिन पहले एक थोडा ख़ुद को गिनाने वाले ने हमें धमकी दी थी
-रहना तो यही है न !
हमें सुनकर गुस्सा आ गया
- क्यों यहाँ कौन से सुरखाब के पर लगे हुए हैं ? और यार तुम लोग एक लाईट तो अपनी सही नही करवा पाते आ जाते हो छोटी -छोटी बातों पर धमकी देने
हमारी बात सुनकर वो चुप हो गया हमने उसकी दुखती राग पर हाथ रखा था। वो सामाजिक परिवर्तन स्थल वाले दल का कार्यकर्त्ता था

सोमवार, 2 नवंबर 2009

धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां

द्रौपदेय ब्लॉग से साभार
२८
-२९ अक्टूबर 2009 की रात में अयोध्या में पञ्च-कोषीपरिक्रमा पुनः इस वर्ष किया, इसके पूर्व जब परिक्रमा की थी तो हम सरकारी अधिकारी थे,एकाध बार तो मेले में ही मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात रहे,इस बार हम एक सामान्यआदमी की तरह परिक्रमा- पथ पर चलती हुई अपार भीड़ में बिल्कुल अकेले चल रहे थे,जब साथ कोई हो,कुछ हो तो असंग की स्थिति होती है, प्रातः चार बजे का समय था,परिक्रमा -पथ पर चलते समय रामराम कहने केअलावा इधर उधर देखते जा रहे थे,स्त्रीपुरुष ,बच्चे-बूढे,सभी अपनी धुन में सीताराम -सीताराम कहते चले जा रहेथे,निम्न एवं मध्यम बर्ग की कतिपय महिलाएं राम जन्म ,सीता-स्वयंबर,बन-गमन,
लक्ष्मण -मूर्छा , आदि काकारुणिक बर्णन लोक-संगीत के माध्यम से कर रहीं थीं उच्च तथा मध्यमोच्च बर्ग के लोग मानों.इस बात काप्रदर्शन कर रहे थे कि इतने बड़े होते हुए भी वह परिक्रमा कर रहे हैं .सब के मन में कुछ कुछ चाह थी,कामनाथी,याचना थी,तृष्णा थी,लोभ था,मोह था,राग था,द्वेष था.यह अपेक्षा उससे थी जो इससे मुक्त था
परिक्रमा वस्तुतः एक ब्यावाहारिक.बैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक ब्यवस्था है.जो भुक्ति तथा मुक्ति दोनों को लक्ष्य कर के निर्धारित कीगयी है. कार्तिक माह में मौसम में बदलाव आता है. गर्मी के बाद जाडा आता है. इसलिए कार्तिक की नवमी,एकादशी तथा पूर्णिमा को क्रमशः चौदह कोशी ,पञ्च कोशी परिक्रमा तथा पूर्णिमा-स्नान का निर्धारण किया गया है. नवमी को चौदहकोष की परिक्रमा जो लगभग ४५ किलोमीटर में है, की जाती है. यह काफी श्रमसाध्य है जिसे करने के बाद थकावट जाती है, साथ ही नंगे पांव करने के कारण लोग थक कर चूर हो जाते हैं किंतु इसे करने के बाद तितीक्षा तथा सहनशीलता में काफी बृद्धि होती है .यहाँ यह विचारणीय है कि यदि इसी पर छोड़ दिया जाय तो पैरों की क्रियाशीलता दुष्प्रभावित हो जायगी ,अतः एकादशी को पंचकोशी [जो लगभग सोलह किलोमीटर है] परिक्रमा का निर्धारण किया गया है,इसे कर लेने के बाद थकावट एकदम दूर हो जाती है .एकादशी से पूर्णिमा तक अयोध्या मेंरह कर सत्संग,भजन-पूजन,इत्यादि करते हुए पूर्णमासी को सरयू-स्नान कर तथा पूर्णतया स्वस्थ होकर लोग घरजाते हैं।
इस लौकिकता के गर्भ में एक आध्यात्मिक रहस्य छिपा है.वास्तव में कोष का अर्थ यहाँखजाना,मंजूषा,गुहा से है .चौदह कोष का अभिप्राय पञ्च कर्मेन्द्रियाँ,पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ तथा चार अन्तः करणमन,बुद्धि,चित्त तथा अंहकार से है.इसकी परिक्रमा करके यानी इसपर नियंत्रण होने के बाद ब्यक्ति पञ्च कोष केक्षेत्र में प्रबेश करता है.यह पञ्च कोष क्रमशः अन्नमयकोश,प्राणमाय कोष ,मनोमय कोष,विज्ञानमय कोष ,तथाआनंदमय कोष.है जिसे ब्यक्ति क्रमशः पार करता है और तभी पूर्णिमा-स्नान का अधिकारी होता है.पूर्णिमा काअभिप्राय पूर्ण प्रकाश,पूर्ण सूख, पूर्ण आनंद है। यह परम स्थिति है.सुखी मीन जिमी नीर अगाधा,जिमी हरि शरण एकहू बाधा . किंतु यह अयोध्या में रह कर,साधू-संन्यासी तथा सदगुरू के सानिध्य में रह कर,तथा अयोध्या केउत्तर में बहने वाली सरयू में स्नान करके ही किया जा सकता है.

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