शनिवार, 21 दिसंबर 2013
बुधवार, 4 दिसंबर 2013
सूरज की लुकाछिपी, डूबते सूरज की कुछ तस्वीरें
ऊंचे पेड़ के नीचे , इक झाड़ी के पीछे
शाम का कोई वक्त
जम्मू-कटरा मार्ग पर
फोटो - रौशन
डूब जाने की ओर
शाम का कोई वक्त
जम्मू-कटरा मार्ग पर
फोटो रौशन
बादलों की गोद मेँ
शाम का कोई वक्त
वैष्णो देवी मंदिर के ऊपर भैरों मंदिर से
फोटो- रौशन
शाम का आखिरी क्षण
शाम का कोई वक्त
वैष्णो देवी मंदिर के ऊपर भैरों मंदिर से
फोटो- रौशन
गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013
गोयबल्स के ध्वजावाहक ; भारत के फासीवादी
काफी पहले की बात है , हम तीसरी कक्षा के छात्र थे और शिशु मंदिर मे पढ़ते थे । हमारा परिवार फैजाबाद शिफ्ट हो रहा था तो हमे पता चला कि फैजाबाद मे अयोध्या है हमे आश्चर्य सा हुआ । भला अयोध्या जैसी अद्भुत जगह जहां स्वयं भगवान श्री राम ने जन्म लिया था फैजाबाद जैसी नजदीक जगह कैसे हो सकती थी! (रामकथा हमने इतिहास और भूगोल जानने से पहले पढ़ी थी )"ये मुगलों की करतूत है " आचार्य जी ने हमे बताया। मानो मुगलों ने अयोध्या स्वर्ग से उतार कर धरती पर ला पटका रहा हो।
ये एक उदाहरण मात्र है । हमे याद है एक परिचर्चा के दौरान अटल बिहारी बाजपेयी जी ने जावेद अख्तर जी के इस कथन पर कि शिशु मंदिरों मे बच्चो के मन मे क्या भरा जाता है पूछा था कि क्या आप शिशु मंदिर गए हैं? हम जवाब देना चाहते थे कि हम गए हैं और सच यही है कि इतिहास के नाम पर कूड़ा ही ठूँसा जाता है (मोदी छाप इतिहासकारों को वही कूड़ा सच लगता है उनसे क्षमा याचना के साथ क्योंकि सच चाहे जितना कड़वा क्यों न हो उससे उनके मन को ठेस जो पहुँचती है )। हाँ बाजपेयी जी बच्चो के मन मे न सिर्फ कूड़ा भरा जाता है बल्कि एक मुस्लिम बच्चे के क्लास मे होते हुए भी ईद की छुट्टी नहीं होती परीक्षा के नाम पर लेकिन दो दिन बाद होने वाली आपकी चुनाव सभा के लिए छुट्टी हो जाती है ।
हम सिर्फ उस कूड़े की बात नहीं कर रहे हैं जो इतिहास के नाम पर ठेला जाता है हम उस कूड़े की भी बात कर रहे हैं जो नैतिक शिक्षा के नाम पर ठूँसा जाता है (अगर किसी को ये आपत्ति हो कि हम मिशनरी स्कूलों की बात क्यों नहीं कर रहे हैं तो उनके लिए हमारी पढ़ाई मिशनरी स्कूलों मे नहीं हुई है )। वो धर्म, नैतिकता और इतिहास के नाम पर जाने क्या क्या पढ़ाते हैं । धर्म तो हमे पता था कि वो हमसे ज्यादा उस उम्र मे भी नहीं जानते थे , नैतिकताए खुद बनती हैं और हमे पाखंड मे भीगी नैतिकताए नहीं पसंद थीं । इस प्रकार पाँचवी कक्षा तक आते आते , हमे उस पूरे संस्थान से असहमति होने लगी (उस समय तो खैर चिढ़ थी )। इतिहास तो खैर तब तक हमने पढ़ा ही नहीं था ।
अभी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ ज्यादा ही मुखर हो चले हैं। पहले लोग उन्हे एक अक्षम शासक (बक़ौल अटल बिहारी बाजपेयी , कुछ लोग जो सक्षम शासक मानते हैं उनसे क्षमा याचना के साथ आखिर सच से दिल तो दुखता ही है आपके दिल मे बनी प्रतिमाओं के खंडित होने का खतरा है लेकिन क्या करें इतिहास सबसे बड़ा मूर्तिभंजक होता है ) के तौर पर ही जानते थे। सोचा जाता था कि पढे लिखे व्यक्ति होंगे लोग परास्नातक बताते हैं । पर अब मुखर हो चलने के बाद कुछ और सच खुलने लगे
काकः कृष्णकः, पिकः कृष्ण:, को भेद पिककाकयो।
बसंत समये प्राप्ते, काकः , काकः पिकः पिकः । ।
अब मुख्यमंत्री जी के इतिहास, भूगोल और सामान्य जानकारी (गुजरातकी प्रगति से जुड़े उनके दावों के पीछे की हकीकत ), उनकी अशोभनीय भाषा , घमंडी व्यक्तित्व और उतावलेपन को सभी लोग देख चुके हैं । ये चीजें ऐसी होती हैं कि विरोधियों को बुरी लगती हैं और चारणों को अत्याधिक प्रिय । यहाँ हमने सिर्फ विरोधी और चारण लिखा है क्यों कि इस परंपरा मे दो ही लोग होते हैं विरोधी और चारण । न समर्थक, न साथी , न निष्पक्ष कुछ भी नहीं । सवाल उठता है कि यह जानबूझ कर होता है या गलती से ।
यहाँ पर यह चर्चा करना बेकार है कि तक्षशिला कहाँ है , दीन-ए -इलाही क्या है सिकंदर उसका प्रचार कब कर रहा था , चाणक्य कहाँ पैदा हुए आदि आदि । यह साफ है कि मुख्यमंत्री जी ने जो बोला वो उनकी जानकारी के अनुसार सही है । सही न होता तो अब तक उनकी तरफ से खंडन आ गया होता (शोभन सरकार पर ट्विट याद करें ) उनकी जानकारी के अनुसार पटेल की अंत्येष्ठि का उनका ब्योरा सही है । उनकी जानकारी जहां तक है ये बाते सही हैं और गलत वो लोग हैं जिनहे ये बाते गलत लगती हैं ।
नरेंद्र मोदी गोयबल्स की उस बात मे भरोसा रखते हैं जिसके अनुसार 100 बार बोलने पर झूठ भी सच हो जाता है ।
मीडिया और पढे लिखे लोगों के एक हिस्से को आभास होने लग गया कि
1। गुजरात ने उनके नेतृत्व के चलते बहुत तरक्की की।
2। कुछ लोगों को महसूस सो रहा है कि 2002 के आगे कुछ बहुत अच्छा हुआ है ।
3। भाजपा को महसूस होने लग गया कि मोदी ही उसकी नैया पार लगा सकते हियन
4। भाजपा को लगने गया कि नरेंद्र मोदी ही उनके सबसे बड़े नेता हैं
याद रखिए इस समूह की अगर जरा भी चली तो इनके इतिहास और भूगोल के ब्लंडर्स कल आधिकारिक सच होंगे ।
लेकिन अगर भारत वैसा ही है जैसा अभी तक रहा था तो कल को हो सकता है नेहरू जी की प्रतिमा के लिए भी कुछ मांगते नजर आयें (1998 मे चुनाव के समय संघ के एक बड़े खेमे मे सोनिया गांधी की काफी प्रशंसा हुआ करती थी )
ये एक उदाहरण मात्र है । हमे याद है एक परिचर्चा के दौरान अटल बिहारी बाजपेयी जी ने जावेद अख्तर जी के इस कथन पर कि शिशु मंदिरों मे बच्चो के मन मे क्या भरा जाता है पूछा था कि क्या आप शिशु मंदिर गए हैं? हम जवाब देना चाहते थे कि हम गए हैं और सच यही है कि इतिहास के नाम पर कूड़ा ही ठूँसा जाता है (मोदी छाप इतिहासकारों को वही कूड़ा सच लगता है उनसे क्षमा याचना के साथ क्योंकि सच चाहे जितना कड़वा क्यों न हो उससे उनके मन को ठेस जो पहुँचती है )। हाँ बाजपेयी जी बच्चो के मन मे न सिर्फ कूड़ा भरा जाता है बल्कि एक मुस्लिम बच्चे के क्लास मे होते हुए भी ईद की छुट्टी नहीं होती परीक्षा के नाम पर लेकिन दो दिन बाद होने वाली आपकी चुनाव सभा के लिए छुट्टी हो जाती है ।
हम सिर्फ उस कूड़े की बात नहीं कर रहे हैं जो इतिहास के नाम पर ठेला जाता है हम उस कूड़े की भी बात कर रहे हैं जो नैतिक शिक्षा के नाम पर ठूँसा जाता है (अगर किसी को ये आपत्ति हो कि हम मिशनरी स्कूलों की बात क्यों नहीं कर रहे हैं तो उनके लिए हमारी पढ़ाई मिशनरी स्कूलों मे नहीं हुई है )। वो धर्म, नैतिकता और इतिहास के नाम पर जाने क्या क्या पढ़ाते हैं । धर्म तो हमे पता था कि वो हमसे ज्यादा उस उम्र मे भी नहीं जानते थे , नैतिकताए खुद बनती हैं और हमे पाखंड मे भीगी नैतिकताए नहीं पसंद थीं । इस प्रकार पाँचवी कक्षा तक आते आते , हमे उस पूरे संस्थान से असहमति होने लगी (उस समय तो खैर चिढ़ थी )। इतिहास तो खैर तब तक हमने पढ़ा ही नहीं था ।
अभी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ ज्यादा ही मुखर हो चले हैं। पहले लोग उन्हे एक अक्षम शासक (बक़ौल अटल बिहारी बाजपेयी , कुछ लोग जो सक्षम शासक मानते हैं उनसे क्षमा याचना के साथ आखिर सच से दिल तो दुखता ही है आपके दिल मे बनी प्रतिमाओं के खंडित होने का खतरा है लेकिन क्या करें इतिहास सबसे बड़ा मूर्तिभंजक होता है ) के तौर पर ही जानते थे। सोचा जाता था कि पढे लिखे व्यक्ति होंगे लोग परास्नातक बताते हैं । पर अब मुखर हो चलने के बाद कुछ और सच खुलने लगे
काकः कृष्णकः, पिकः कृष्ण:, को भेद पिककाकयो।
बसंत समये प्राप्ते, काकः , काकः पिकः पिकः । ।
अब मुख्यमंत्री जी के इतिहास, भूगोल और सामान्य जानकारी (गुजरातकी प्रगति से जुड़े उनके दावों के पीछे की हकीकत ), उनकी अशोभनीय भाषा , घमंडी व्यक्तित्व और उतावलेपन को सभी लोग देख चुके हैं । ये चीजें ऐसी होती हैं कि विरोधियों को बुरी लगती हैं और चारणों को अत्याधिक प्रिय । यहाँ हमने सिर्फ विरोधी और चारण लिखा है क्यों कि इस परंपरा मे दो ही लोग होते हैं विरोधी और चारण । न समर्थक, न साथी , न निष्पक्ष कुछ भी नहीं । सवाल उठता है कि यह जानबूझ कर होता है या गलती से ।
यहाँ पर यह चर्चा करना बेकार है कि तक्षशिला कहाँ है , दीन-ए -इलाही क्या है सिकंदर उसका प्रचार कब कर रहा था , चाणक्य कहाँ पैदा हुए आदि आदि । यह साफ है कि मुख्यमंत्री जी ने जो बोला वो उनकी जानकारी के अनुसार सही है । सही न होता तो अब तक उनकी तरफ से खंडन आ गया होता (शोभन सरकार पर ट्विट याद करें ) उनकी जानकारी के अनुसार पटेल की अंत्येष्ठि का उनका ब्योरा सही है । उनकी जानकारी जहां तक है ये बाते सही हैं और गलत वो लोग हैं जिनहे ये बाते गलत लगती हैं ।
नरेंद्र मोदी गोयबल्स की उस बात मे भरोसा रखते हैं जिसके अनुसार 100 बार बोलने पर झूठ भी सच हो जाता है ।
मीडिया और पढे लिखे लोगों के एक हिस्से को आभास होने लग गया कि
1। गुजरात ने उनके नेतृत्व के चलते बहुत तरक्की की।
2। कुछ लोगों को महसूस सो रहा है कि 2002 के आगे कुछ बहुत अच्छा हुआ है ।
3। भाजपा को महसूस होने लग गया कि मोदी ही उसकी नैया पार लगा सकते हियन
4। भाजपा को लगने गया कि नरेंद्र मोदी ही उनके सबसे बड़े नेता हैं
याद रखिए इस समूह की अगर जरा भी चली तो इनके इतिहास और भूगोल के ब्लंडर्स कल आधिकारिक सच होंगे ।
लेकिन अगर भारत वैसा ही है जैसा अभी तक रहा था तो कल को हो सकता है नेहरू जी की प्रतिमा के लिए भी कुछ मांगते नजर आयें (1998 मे चुनाव के समय संघ के एक बड़े खेमे मे सोनिया गांधी की काफी प्रशंसा हुआ करती थी )
मंगलवार, 13 अगस्त 2013
गुरुवार, 16 मई 2013
सूनी यज्ञशाला !
जौनपुर वाराणसी मार्ग पर एक खाली पड़ी यज्ञशाला |
यज्ञशाला के समीप नदी |
संभवतः यहाँ कुछ समय पहले कोई बड़ा यज्ञ हुआ था उसके बाद यज्ञशाला यूँ ही खाली पड़ी है |
यज्ञशाला देख के हमें अपने गाँव में हुए शतचंडी यज्ञ की याद आई जो संभवतः हमारे जन्म से पूर्व हुआ था पर लोग आज तक उसकी चर्चा करते हैं |
समय कम था और आस पास भी कोई नहीं था जिससे इस यज्ञशाला के बारे में कुछ और पता लगता |
फोटो : रौशन
रविवार, 21 अप्रैल 2013
रविवार, 31 मार्च 2013
मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013
सोमवार, 11 फ़रवरी 2013
बात मानसिकताओं से आगे की
तो दो खतरनाक लोग जिन्हें हम "बिरयानी " खिला रहे थे अंततः अपने अंजाम तक पहुँच गए . नौ फ़रवरी को अफजल गुरु को फांसी पर लटकाए जाने के बाद राजनैतिक तौर पर जो कुछ भी हो मीडिया चीख चीख कर तो सकता है कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में हम अब साफ्ट नहीं हैं .
राष्ट्रवाद का उफान !
हमें कुछ नहीं कहना है अफजल गुरु की फांसी पर .
हो सकता है यह शुद्ध रूप से प्रशासनिक फैसला हो या हो सकता है यह एक राजनैतिक चाल हो विपक्ष के हमले को कुंद करने को . या हो सकता है कुछ ख़ास चीजों से ध्यान हटाने का मामला हो .
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला था उसका अनुपालन होना ही था आज नहीं तो कल ! भले ही फैसले में माननीय न्यायाधीश महोदय "जन भावनाओं को तुष्ट करने " जैसी बात जोड़ देते हैं यह फैसला तो था ही।
फैसले का अनुपालन होना चाहिए और शीघ्र होना चाहिए
उम्मीद है कि सरकार कश्मीर घाटी में स्थितियों को संभालने में सफल रहेगी
पर पिछले दो दिनों से टी वी , सोशल मीडिया (स्वयंभू ) और इंटरनेट पर देशभक्ति , न्याय , आतंक के खिलाफ जंग और शान्ति की बाते सुनते हुए कई बाते दिमाग में आती रहीं
१. कश्मीरियत की बात करने वाले लोग जम्मू और दिल्ली के कैम्पों में जिंदगी बसर कर रहे अपने भाइयों के बारे में में कश्मीरी हो के क्यों नहीं सोच पाते . क्या कश्मीरियत उसी में मानी जायेगी जिसने बन्दूक उठा ली . पी ओ के और घाटी से भाग कर आये परिवारों के बारे में कश्मीरियों का दिल कब जागेगा .
२ कैम्पों में रह रहे उन लोगों की जिम्मेदारी प्रदेश और केंद्र सरकारों पर भी आती है . क्या वे लोग भारत के नागरिक नहीं हैं ? कश्मीर समस्या पर बात में कभी उन्हें भी शामिल किया जाएगा ?
३ बेअंत सिंह और राजीव के हत्यारों की सजाओं पर भी फैसला शीघ्र होना चाहिए . जब हम कश्मीर के हालात में ऐसा फैसला ले सकते हैं तो पंजाब और तमिलनाडु अपवाद क्यों बने
४. न्याय शान्ति की पूर्व शर्त होती है . और क्षेत्रवादी , साम्प्रदायिक आदि दंगों की हिंसा भी आतंकवाद है .और ये आतंकवादी चाहे वो दिल्ली के हों गुजरात के हों असम के हों महाराष्ट्र के हों उनके खिलाफ सख्त कार्यवाहियों की शुरुआत करनी चाहिए . चुनाव जीतने से हर अपराधी स्वीकार्य नहीं हो जाता चाहे वो सज्जन कुमार हों या मोदी
मानसिकताओं से आगे निकलना बहुत ही जरुरी है
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