तो दो खतरनाक लोग जिन्हें हम "बिरयानी " खिला रहे थे अंततः अपने अंजाम तक पहुँच गए . नौ फ़रवरी को अफजल गुरु को फांसी पर लटकाए जाने के बाद राजनैतिक तौर पर जो कुछ भी हो मीडिया चीख चीख कर तो सकता है कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में हम अब साफ्ट नहीं हैं .
राष्ट्रवाद का उफान !
हमें कुछ नहीं कहना है अफजल गुरु की फांसी पर .
हो सकता है यह शुद्ध रूप से प्रशासनिक फैसला हो या हो सकता है यह एक राजनैतिक चाल हो विपक्ष के हमले को कुंद करने को . या हो सकता है कुछ ख़ास चीजों से ध्यान हटाने का मामला हो .
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला था उसका अनुपालन होना ही था आज नहीं तो कल ! भले ही फैसले में माननीय न्यायाधीश महोदय "जन भावनाओं को तुष्ट करने " जैसी बात जोड़ देते हैं यह फैसला तो था ही।
फैसले का अनुपालन होना चाहिए और शीघ्र होना चाहिए
उम्मीद है कि सरकार कश्मीर घाटी में स्थितियों को संभालने में सफल रहेगी
पर पिछले दो दिनों से टी वी , सोशल मीडिया (स्वयंभू ) और इंटरनेट पर देशभक्ति , न्याय , आतंक के खिलाफ जंग और शान्ति की बाते सुनते हुए कई बाते दिमाग में आती रहीं
१. कश्मीरियत की बात करने वाले लोग जम्मू और दिल्ली के कैम्पों में जिंदगी बसर कर रहे अपने भाइयों के बारे में में कश्मीरी हो के क्यों नहीं सोच पाते . क्या कश्मीरियत उसी में मानी जायेगी जिसने बन्दूक उठा ली . पी ओ के और घाटी से भाग कर आये परिवारों के बारे में कश्मीरियों का दिल कब जागेगा .
२ कैम्पों में रह रहे उन लोगों की जिम्मेदारी प्रदेश और केंद्र सरकारों पर भी आती है . क्या वे लोग भारत के नागरिक नहीं हैं ? कश्मीर समस्या पर बात में कभी उन्हें भी शामिल किया जाएगा ?
३ बेअंत सिंह और राजीव के हत्यारों की सजाओं पर भी फैसला शीघ्र होना चाहिए . जब हम कश्मीर के हालात में ऐसा फैसला ले सकते हैं तो पंजाब और तमिलनाडु अपवाद क्यों बने
४. न्याय शान्ति की पूर्व शर्त होती है . और क्षेत्रवादी , साम्प्रदायिक आदि दंगों की हिंसा भी आतंकवाद है .और ये आतंकवादी चाहे वो दिल्ली के हों गुजरात के हों असम के हों महाराष्ट्र के हों उनके खिलाफ सख्त कार्यवाहियों की शुरुआत करनी चाहिए . चुनाव जीतने से हर अपराधी स्वीकार्य नहीं हो जाता चाहे वो सज्जन कुमार हों या मोदी
मानसिकताओं से आगे निकलना बहुत ही जरुरी है
आतंकवादियों से दृढ़ता से ही निपटना होगा, और कोई उपाय नहीं..
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