इस ब्लॉग पर हमारा ये पहला पोस्ट है। अपना ब्लॉग बंद करने के बाद रौशन का ब्लॉग हमारी पहली पसंद था और वैसे ही इस ब्लॉग के पास वर्ड्स हमारे पास पहले से ही थे. फिर भी उसे पूछना तो ज़रूरी ही था. तो पूछ लिया और उसे तो ना कहना ही नही था. सच तो है की वो ना तो कहता ही नही. वो ऐज यू विश बोल देता है और अगला मतलब निकालता रह जाए. हमने तो उसकी ऐज यू विश को हमेशा हा और चुप्पी को हमेशा ना न कहने की आदत के रूप मे जाना है।
हमारी ब्लॉग्स मे दिलचस्पी इधर थोड़े दिनो मे ज़्यादा बढ़ी है जब से हमने पाया कि देवनागरी में लिखना बड़ा आसान है. इधर कुछ और चीज़े हुईं जिन्होने काफ़ी काम आसान कर दिया. जैसे गूगल पर डॉक्युमेंट्स साझा करने कि सुविधा, क्विलपॅड और ब्लॉगर जैसी साइट्स पर हिन्दी टाइपिंग कि सुविधा और बढ़ता हुआ इंटरनेट का जाल. हमे याद है कि सालों पहले दिल्ली में साइबर केफे में रेट्स काफ़ी ज़्यादा हुआ करते थे अब ये लोगों कि पहुँच मे ज़्यादा आ रहे हैं. इंटरनेट कि वजह से सिटिज़न जर्नलिस्ट जैसे कॉन्सेप्ट भी बड़े लोकप्रिय हो रहे हैं और पढ़ने, बात करने और समझने के ज़्यादा अवसर मिल रहे हैं.
लब्बोलुआब यह है कि दुनिया छोटी हो के मुट्ठी मे आ रही है। लोग-बाग ब्लॉग्स में बहुत कुछ लिख रहे हैं. हमने देखा कि कविताओं, निजी डायरियों और अनुभवों की भरमार है. ये उन लोगों के हैं जो इंटरनेट कि वजह से अपने मन कि बात कह पाने मे ज़्यादा सक्षम हैं. समझ का एक विस्तार सा चल रहा है
ऐसे में हम क्या लिखें? कहने को तो बहुत कुछ या पर क्या सब कुछ कहा जा सकता है? वो ग़ालिब ने कहा है न
किसी को देके दिल कोई नवासंगे फुगा क्यों हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मूह में ज़ुबाँ क्यों हो
हम भी ग़ालिब की इज़्ज़त करते हैं लेकिन इसका ये मतलब तो नही कि सामने मौका और उंगलियों तले की बोर्ड हो और हम चूक जाएँ। अब हम कोई कवि तो हैं नही.आप बोलेंगे कि कवि तो बोलता है, कहता है और लिखता हैयही तो ग़लत फ़हमी है ये जो कवि और शायर वग़ैरह होते हैं ये बड़े गोल मोल टाइप के इंसान होते हैं. बातों को घुमा कर लोगो को गोल गोल घमाने में इनका कोई सानी नही. ये कोई बात इसलिए लिखते हैं कि कोई और बात छुपानी होती है.तो इस ब्लॉग में हमारे सहभागी रौशन के उलट हम जो कुछ लिखेंगे सच लिखेंगे, सच्ची जिंदगी से लिखेंगे और कविता तो बिल्कुल नही करेंगे. और इसका उदाहरण है अगला पोस्ट जो एक प्रसंग है और हमारे ब्लॉग पर था उसे हम यहाँ ले कर आ रहे हैं।
बाकी जल्दी ही
swagat hai yahan par. dhanyabad
जवाब देंहटाएंबहुत खूब - रौशन (और चचा ग़लिब) के बारे में जानकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंsach padhane ka mauka milega,advance me badhai aapko
जवाब देंहटाएंबहुत खूब - रौशन (और चचा ग़लिब) के बारे में जानकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंजारी रहे.
आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंग़ालिब की शायरी फिर कवियों पर तोहमत.
चलिए सच से रु-ब-रु होने का एक मौका तो मिलेगा.
अब स्वागत क्या लिखें जब आपने खुद ही लिख दिया कि इस ब्लॉग के पासवर्ड्स आपके पास हमेशा से थे .
बस यू ही लिखती रहिएगा
नमस्कार, आज नइ सडक रवीशजी के ब्लोग पर आपका कमेंट पढा, नटखट बच्चे को आपका सही जवाब मिला है। आपकी बात सही है कि हम जब वोम पुलिस ओफीसर का नाम तक ठीक से नहीं जानते फ़िर चिल्लाने से क्या फ़ायदा?
जवाब देंहटाएंबाय ध वे "नटखट बच्चे" ने अपनी पहचान भी तो छुपाई है।
आप के जवाब के लिये धन्यवाद।
आपका ब्लोग बडा पसंद आया।