डॉ अनुराग आर्य की बनारस यात्रा और विश्वनाथ मन्दिर के बारे में पढ़ कर हमें अपनी एक विश्वनाथ मन्दिर कीयात्रा याद आ गई।
बारहवीं की बोर्ड परिक्षा देने के बाद हम और हमारे एक मित्र योगेश वाराणसी एक परीक्षा देने गए थे। वाराणसीहमेशा से हमें आकर्षित करने वाले शहरों में से रहा है। परीक्षा देने के बाद हम दोनों ने निश्चय किया कि घर के लिएरवाना होने से पहले थोडा घूम फ़िर लिया जाय। वाराणसी में यूँ अपने मन से घूमने का विचार कभी दिमाग मेंआया ही नही था सो पता नही था कि अगर घूमना है तो कहाँ घूमना है ऊपर से तुर्रा यह कि हमें बहती धारा की तरहयूँ ही निकल जाने में मज़ा आती है तो किसी से पूछना भी मंज़ूर नही था । योगेश के साथ बड़ी लम्बी बहस के बादतय हुआ कि एक एक करके उसकी और हमारी पसंद की ज़गहों को देखा जायेगा । पहले हमारा नंबर था तो हमभटकते हुए दशाश्वमेध घाट पहुंचे । गंगा का गहरे तक पैठा आकर्षण घाट के किनारे और फ़िर गंगा में इधर उधरफैली गन्दगी देख कर काफूर हो गया । हमारा मन खिन्न हो उठा था । अब योगेश की बारी थी और तब तक वहनास्तिक नही था। हम विश्वनाथ मन्दिर की गलियों में मुड़ चले।
विश्वनाथ मन्दिर जैसे जैसे नज़दीक आता गया पण्डे हमें घेरते गए। हमने योगेश को सिखा रखा था कि किसी पण्डेको साथ नही लेना है हम ख़ुद से मन्दिर देखेंगे । बस हमें बिना इधर उधर देखे मन्दिर की ओर बढ़ते जाना है लेकिनयोगेश जिज्ञासु प्रवृत्ति का होने के चलते एक पण्डे के जाल में फंस ही गया । अब हम पण्डे के मार्गदर्शन में बढ़ने कोविवश थे।
चढावा खरीदकर जब हम मन्दिर के अन्दर पहुंचे तो दर्शन के बाद पण्डे ने हमें बाबा विश्वनाथ के नाम पर वहां केपुजारी को कुछ दान देने को कहा । योगेश अभिभूत था उसने १०० का एक नोट पुजारी को अर्पण किया । अब पण्डेने हमारी तरफ़ निगाह बढ़ाई । हम मन्दिर वन्दिर में चढावे के नाम पर हमेशा से कंजूस रहे हैं पर उसकी नजरों नेहमें भी जेब में हाथ डालने को मजबूर कर दिया। हमारी जेब से भी एक नोट बाहर आया फर्क बस इतना था कि वो१० का था।
हम दर्शन करके बाहर निकलने को उतावले थे पर पंडा हमें आगे ले गया। यहाँ पर उसने हमें अन्नपूर्णा देवी परमाता-पिता के लिए कुछ चढाने को कहा। हम योगेश का हाथ पकड़ने को बढे ही थे कि उसने फ़िर से १०० का नोटआगे कर दिया था । अब माता-पिता के नाम पर क्या कंजूसी ! हमें भी मजबूरन १० का नोट बढ़ाना पड़ा।
हमें लगा था कि अब हम मन्दिर से निकल जायेंगे पर पंडा तो योगेश की जेब की गहराई नापने की सोच चुका था और हमें लेकर वो मन्दिर में न जाने किस ओर एक अंतहीन सी लगने वाली यात्रा पर निकल चुका था। थोडा आगे बढ़ने के बाद मन्दिर में दर्शनार्थी दिखना बंद हो गए। चारों ओर बस सन्नाटा ही सन्नाटा था। मन्दिर में हम किस दिशा में थे, कहाँ थे अंदाजा मिलना बंद हो गया था। हमें एकअनजान सी फ़िल्म याद आने लगी जिसमे पण्डे मन्दिर में आने वालों को लूटा करते थे।
अब योगेश भी ५० और फ़िर १० की ओर बढ़ रहा था और हम तो बस सर झुकाने लग गए थे।
तीन और जगहों पे जाने के बाद हमने कनखियों से देखा कि थोडी दूर पर पुलिस के दो सिपाही एक जगह पर बैठे हैं हमने तयकर लिया कि अब आगे नही जाना है। पंडा आगे आगे चल रहा था हमने योगेश की जेब से पर्स लिया और अपनाऔर उसका दोनों का पर्स छिपा लिया । योगेश को भी डर लगने लगा था । अगला पड़ाव सिपाहियों से ज्यादा दूरनही था जब उसने एक और जगह कुछ चढाने को कहा।
योगेश को पीछे करके हम आगे आ गए और उससे कहा कि अब आपकी दक्षिणा के लिए ही पैसा बचाना हो तोवापस चलिए अब हमारे पास पैसा बिल्कुल नही है। हमने तय किया था कि अगर इसने कुछ आना-कानी की तोअब यहाँ से पुलिस वालों के पास जायेंगे। हमने हाथापाई की पूरी तैयारी कर रखी थी।
फिलहाल थोडी बहस के बाद वो तैयार हो गया हम वापस लौटे। हमने उसे दक्षिणा में ११ रूपये दी तो वो भड़क उठा । उसने हम दोनों के १०१-१०१ मांगे । पर हम चलते बने। उसने काफ़ी दूर तक हमारा पीछा किया फ़िर गालियाँ देनेलगा । "फ़िर आना मन्दिर देखूंगा " की धमकी देकर उसने हमारा पीछा छोड़ा।
इस अनुभव के बाद हमारा मन खट्टा हो चला था और हम सीधे बस स्टैंड की ओर चल पड़े।
हम अभी भी आस्तिक बने हुए हैं पर योगेश नास्तिक हो गया है।
वैसे वाराणसी हमें अभी भी पसंद है वहाँ अक्सर जाते रहते हैं पर अब विश्वनाथ मन्दिर जाने की इच्छा नही होती। गंगा तट भी जाने का मन नही होता बस संकट मोचन होकर वापस आ जाते हैं
jay vishvanaath baba ki :)
जवाब देंहटाएंमुझे अपनी याद आती है - तिरुपति में जा कर भी दर्शन के बगैर चला आया था - लगा कि भगवान तो मन में हैं। लाइन में नहीं।
जवाब देंहटाएंपण्डों की हिन्दुत्व की ठेकेदारी हिन्दुत्व का कृष्ण पक्ष है! :-)
बंगलौर का कृष्ण का भव्य मंदिर हो या मैसूर का कोई मंदिर ....या कोई भी मंदिर ..सब जगह यही हाल है ..कई साल पहले हरिद्वार गया था ...तब एक ही बात दिमाग में आई थी के मोक्ष के रास्ते में कैसे कैसे लोग बैठे है ???
जवाब देंहटाएंइस तरह के कृत्य ही लोगों को धर्म से विमुख कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपने पंडत जी को कुछ दिया हो या न दिया हो, पर जो आपने चढावे में चढाया उस में से तो कमीशन तो मिल गया होगा. पंडित जी को.
जवाब देंहटाएंजे बाबा विश्वनाथ .
अच्छा तो आप हिन्दू हैं और आस्तिक हैं?
जवाब देंहटाएंऐसे ही हिन्दू हैं तो हिंदुत्व का क्या होगा
न जाने कुछ लोग हर चीज को क्यों हिंदुत्व से जोड़ने पर तुले हैं और ज्यादातर बुराई को। धन्य हो.....
जवाब देंहटाएंक्या कहा जाय पंडों ने हिन्दू धर्म को बिगाड़ कर बदनाम कर रख दिया -अगली बार मेरे साथ दर्शन करें ! पुरानी याद को मिटाने के लिए !
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