सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

जिम्मेदारी लेना सीखो अन्ना !

अन्ना हजारे और उनके साथियों की कांग्रेस को हराने की अपील को लेकर कांग्रेस में काफी कुछ कहा जा रहा है . मजेदार बात यह है कि अन्य राजनैतिक दल इस बात पर खामोश हैं. शायद उनकी खामोशी इस बात को लेकर है कि कल को अगर इसी तरह की अपील उनके खिलाफ आ जाती है तो वो क्या करेंगे.?
ख़ैर जैसा कि अन्ना हजारे के एक साथी ने कहा कि सत्ताधारी दल होने के चलते लोकपाल बिल पास करवाने की जिम्मेदारी कांग्रेस की बनती है , अभी तूफ़ान का सामना कांग्रेस को करना लाजिमी है. कांग्रेस के लिए यह बड़ी ही अप्रिय स्थिति बन आई है और वह निश्चित ही इसे लेकर परेशानी में है. 
हमारा मानना है कि जनतांत्रिक देश के जिम्मेदार नागरिक होने के चलते अन्ना और उनके साथियों को चुनावों के लिए मुद्दे तय करने और जन साधारण से उन मुद्दों पर किसी को वोट देने या न देने की अपील करने का पूरा हक़ है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है चाहे यह किसी एक राजनैतिक दल या पूरी की पूरी राजनैतिक व्यवस्था को कितना भी नागवार क्यों न गुजरे. इससे पहले भी सिर्फ एक मुद्दे को लेकर चुनाव हुए हैं अगर किसी को यह महसूस होता है कि चुनाव में मत देने के लिए कई मुद्दों को एक साथ देखा जाना जरूरी है उसे शायद "वो मेरी ही माँ नहीं पूरे देश की माँ थीं "  या "राम लला हम आयेंगे मंदिर वही बनायेंगे " नारों या ऐसे ही तमाम नारों के साथ लडे चुनाव नहीं याद हैं . जब ऐसे मुद्दों पर चुनाव लडे जा सकते हैं तो लोकपाल मुद्दे पर क्यों नहीं.
यह तमाम बाते अना और उनके साथियों की सही हैं और हमेशा सही रहेंगी बस हमारा प्रश्न है कि क्या अन्ना जिम्मेदार नागरिक नहीं हो सकते थे?
हमारा स्पष्ट मत है कि सही मांग और सही बात के बावजूद अन्ना और उनके साथी शुरू से गैर जिम्मेदार हैं. 
१ . जब लोकपाल बिल के लिए संयुक्त कमेटी बनायी गयी थी और उसमे सरकार से इतर कुछ लोग और शामिल किये गए थे जिन्हें अन्ना हजारे ने चुना था तो क्या अन्ना हजारे उस कमेटी में अन्य दलों के सदस्यों की सदस्यता की मांग नहीं कर सकते थे? उन्होंने ऐसा नहीं किया (उनका बाद में यह कहना कि वह चाह रहे थे पर सरकार नहीं मानी स्वीकार्य नहीं है क्योंकि उन्होंने उस समय इस मुद्दे की चर्चा तक नहीं की थी ) क्योंकि उन्हें लगता रहा है कि वह जो सोच रहें हैं वही अंतिम सत्य है बाकी पूरे देश में कोई कुछ सोच ही नहीं सकता .
२. जब ऐसी किसी संयुक्त कमेटी को हजारे और उनके साथी स्वीकार कर रहे थे तो क्या उनकी यह जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि वह इस कमेटी को एक सही अंजाम तक पहुंचाने का प्रयास करते. दलील फिर दी जाती है कि सरकार नहीं तैयार थी. लेकिन आये दिन अखबारों और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में वह और उनके साथी सिर्फ और सिर्फ धमकाने की मुद्रा में ही नजर आते रहे. एक भी बयान किसी ने ऐसा दिया था कि हम प्रयास कर रहे हैं या और कुछ ऐसा जो जिम्मेदारी का बोध कराता हो? कड़ा लगेगा पर तथाकथित टीम अन्ना के लोगों  (अन्ना हजारे समेत ) के आचरण और भाषा हमेशा उन राजनेताओं से भी गयी गुजरी रही जिनकी वह आलोचना करते हैं. 
 ख़ैर बीच में रामलीला मैदान हुआ . उसमे क्या रहा कैसा रहा यह सभी ने देखा. अब सीधे आते हैं चुनाव के मुद्दे पर 
अन्ना के एक साथी ने यह पूछने पर कि सपा और बसपा तो खुले रूप में जन लोकपाल की विरोधी है तो आप उनके खिलाफ प्रचार करने कि बात क्यों नहीं करते, उन्होंने बताया कि इन दलों का लोकपाल बिल पास करवाने में कोई योगदान नहीं होगा इसलिए वह सिर्फ कांग्रेस को हराने की बात कर रहे हैं. अब क्या यह लोग बताएँगे कि अगर यही बात है  तो राज्यों के विधानसभा चुनावों में आप प्रचार की बात क्यों कर रहे हैं . राज्य की विधानसभा तो लोकपाल बिल पास कर नहीं सकती. अगर कांग्रेस भ्रष्ट है इसलिए आप कांग्रेस के खिलाफ हैं तो बाकी भ्रष्टों पर इनायत क्यों कर रहे हैं और अगर सिर्फ लोकपाल ही मुद्दा है भ्रष्टाचार नहीं तो राज्यों की विधान सभाओं से तो कोई लेना देना ही नहीं है

आते हैं हिसार की बात पर ! वहाँ कांग्रेस पहले ही कमजोर स्थिति में थी. लड़ाई तो ओम प्रकाश चौटाला के बेटे अजय चौटाला और भजनलाल के बेटे कुलदीप  विश्नोई में थी . हजारे ने कहा था कि अगर लोकपाल बिल शीतकालीन सत्र में पास नहीं हुआ तो वह कांगेस के खिलाफ प्रचार करेंगे . मजे की बात तो यह है कि इतना बोलने के बाद याद आया कि शीत कालीन सत्र तो अभी शुरू नहीं हुआ है , हजारे और उनके साथियों ने तय कर लिया कि शीत कालीन सत्र का इन्तजार क्यों करें अभी से कांगेस के खिलाफ प्रचार शुरू कर देते हैं और पहुँच गए हिसार . प्रश्न यह उठता है कि अगर कांग्रेस भ्रष्टाचार का दूसरा नाम है इसलिए उसे हराना है तो फिर जिताना किसे है ? अगर हजारे में जिम्मेदारी का भाव होता तो वह एक प्रत्याशी खडा करते और कहते कि यह हमारा प्रत्याशी है स्वच्छ है और लोकपाल का समर्थक है . आप इसे वोट दें . उस प्रत्याशी को (केजरीवाल तो अभी सरकारी सेवा में हैं चुनाव लड़ नहीं सकते , किरण बेदी या फिर शान्ति भूषण लड़ सकते थे ) आसानी से जिताया जा सकता था और वह सांसद बन कर शीतकालीन सत्र में लोकपाल के सपने को यथार्थ में लाने के लिए खडा हो सकता था. 

तो हिसार में अन्ना ने नहीं कहा कि किसे जिताना है. कुलदीप विश्नोई या अजय चौटाला ? उम्मीद है हजारे को इनका इतिहास पता होगा. 
अन्ना प्रत्याशी नहीं उतार सकते वो वोटबैंक की नहीं लोगों की राजनीति करते हैं एक सहज प्रश्न उठता है कि जब देश के सबसे बड़े विपक्षी दल भाजपा के अध्यक्ष ने पत्र अन्ना को भरोसा दिलाया है कि वह जन लोकपाल के प्रावधानों से सहमत हैं तो अन्ना भाजपा को समर्थन की अपील क्यों नहीं कर देते? कांग्रेस को हराने के लिए इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता है . लोगों के पास एक विकल्प  होगा . भाजपा को समर्थन मिल जाय तो वह सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है. लेकिन अन्ना के साथी वह भी नहीं कर सकते इन सब के लिए जिम्मेदारी लेनी पड़ती. आकांक्षाओं के समुद्र में गोते लगाना पड़ता . अगर शौक दूसरों को गैर जिम्मेदार बोलना ही हो गया हो तो जिम्मेदारी क्यों रास आने लगी .
श्रीमान अन्ना हजारे  दूसरों को नसीहत देना और पागलखाने जाने की सलाह देना थोड़े दिन के लिए रोक के   एक बार जिम्मेदारी लेना भी सीखो . बहुतों ने भरोसा किया है तुम पर 

8 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने एक बार बनारस में मेधा पाटेकर और संदीप पण्डे दोनों से ही पूछा था कि आप हमें विकल्प क्यों नहीं देते ! इसका न तो सटीक उत्तर तब था उनके पास न अब है. और जनता कुएं और खाई के बीच झूलने की स्थिति में भी नहीं, चुनना तो है ही...

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  2. Well written Roushan!
    If you don't mind, I would like to post it on my blog as a guest post(with your name).

    will wait for your reply.

    Regards

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  3. Roushan you may be right at some point of time with all the Constitutional approach and with your ethical arguments but I am really not agree with your view, If this government would have accepted his demands before he started fast in the month of April, Anna would have never dared yo go against the government. Anna may be Dictator is his opinion but that was the need of the hour.Anna has just not defy the government but he has put another hoping spark in the Democracy.Since from independence Netas have looted this country and democracy was still there but why did not this corruption issue not raise by the public ,as you said Anna should consider the public opinion and other party opinion, Where were this so called PUBLIC from last 60 years. If government was positive enough to carry this Civil Society and government body decisions on Lokpal Bill to a conclusion , than government would not have put that useless Lokapal Bill , if you have not seen have a look at it. This is not Anna who should be Jimmedar this is government and Aam Janata who elect a Imandar person and become completely corrupt at the end of 5 years. The person is not responsible for it but the SYSTEM who made him corrupt and still enjoying the life after eating-GRASS , Anna dared to change the System not the Government.If government would have wanted to pass the bill it should have passed in the last parliamentary session.How many time government moved from his words and why Anna will protest against the BSP and SP as they don't have the that power to pass the Lokpall Bill in the parliament. Anna is doing what is being expected against the Corrupt Congress government at the centre and other parties at the state level like Karnataka.

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  4. बलराम जी आपने लगता है पूरी पोस्ट पढ़ी ही नहीं . वस्तुतः प्रश्न यही है कि जहां लोकपाल बिल पास नहीं हो सकता वहाँ प्रचार करने का औचित्य क्या है और अगर औचित्य है तो फिर सकारात्मक प्रचार क्यों नहीं ? क्यों विकल्प उपलब्ध कराने की बात नहीं की जाती. क्या नकारात्मक प्रचार और विकल्प की अनुपलब्धता में ज्यादा गलत लोग नहीं आयेंगे? हिसार उदाहरण है

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  5. Roshan Bhaii, behad santulit aur bebak tippanee hai apkee. durbhagy se is waqt apne dost bhi in sawalon se bach rahe hain

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  6. अच्छा लिखा है। बात साल भर पुरानी हो गयी फ़िर भी सब तर्क जायज हैं। अब तो टीम बंट भी गयी।

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hamarivani

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