खामोशियाँ!
कुछ कह जातीं हैं हमेशा
जानते थे हम
इसलिए उस दिन अचानक
जब वो मिला
तो बोलते रहे हम
दुनिया भर की बातें,
बेकार की बातें।
वो ख़ामोश रहा
बस सुनता रहा
और फिर चला गया
बिना कुछ कहे
बस ख़ामोशी ओढ़ कर।
और तब हमने जाना
कि ख़ामोशी सचमुच बोलती है।
भीतर तक छील गयीं
कई पुराने छुपे हुए से ज़ख़्म
फिर से खोल गयी
बचते रहे जिन बातों से हमेशा हम
उसकी ख़ामोशी
वो सबकुछ बोल गयी।
बहुत खूबसूरत ब्लॉग और उतनी ही सुंदर रचना...जैसे सोने पर सुहागा...बहुत ही अच्छा लगा यहाँ आ कर और आपकी खामोशी वाली रचना पढ़ कर...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत ख़ूब !
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कहती कविता
जवाब देंहटाएंबोलती है खामोशी।
बहुत बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता...
जवाब देंहटाएंखामोशी नियामत है...
बेशकीमती है खामोशी...
क्योंकि तब बुने जाते हैं
अनमोल शब्द...
खामोशी जितनी घनी होगी...
उतने ही गहरे होंगे
शब्दों के अर्थ भी...
bahut achchhe
जवाब देंहटाएंऔर तब हमने जाना
जवाब देंहटाएंकि ख़ामोशी सचमुच बोलती है।
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निश्चय ही, बोलने से ज्यादा बोलती है।
--- एक खामोशी है, सुनती है कहा करती है।
कविता मेरे मन की लिखी आपने।
sach bahut gehri baat kahi sundar.
जवाब देंहटाएंऔर तब हमने जाना
जवाब देंहटाएंकि ख़ामोशी सचमुच बोलती है।
भीतर तक छील गयीं
कई पुराने छुपे हुए से ज़ख़्म
फिर से खोल गयी।
भावपूर्ण कविता, हार्दिक बधाई।
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
sachmuch khaamoshi bolti hai..
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavita..
जवाब देंहटाएंएक ज़माना था की खामोशियाँ हौले से कुछ कह जाती थी..
अब तो बस चीख सी सुनाई देती है।
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जवाब देंहटाएंkhamoshi jyada asardaar hoti hai.
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