शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

सुभाष बाबू के जन्मदिन पर

सुभाष से जुड़ी हुई यह कविता हमने छठी या सातवी में पढ़ी थी तब से याद है और आजभी ह्रदय मेंउत्साह का संचार करती है
यह गोपाल प्रसाद व्यास की कविता है , कविता का नाम है ख़ूनी हस्ताक्षर






ख़ूनी हस्ताक्षर

वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें जीवन, न रवानी है!

जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं, पानी है!


उस दिन लोगों ने सही-सही, खूं की कीमत पहचानी थी।

जिस दिन सुभाष ने बर्मा में, मॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, स्‍वतंत्रता की खातिर, बलिदान तुम्‍हें करना होगा।

तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा।


आज़ादी के चरणें में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी।

वह सुनो, तुम्‍हारे शीशों के, फूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का इतिहास कहीं काली स्याही लिख पाती है

इसको लिखने के लिए खूनकी नदी बहाई जाती है।


ये कहते-कहते वक्‍ता की, ऑंखें में खून उतर आया!

मुख रक्‍त-वर्ण हो दमक उठा, दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके, वे बोले,”रक्‍त मुझे देना।

इसके बदले भारत की, आज़ादी तुम मुझसे लेना।”


हो गई उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे।

स्‍वर इनकलाब के नारों के, कोसों तक छाए जाते थे।

“हम देंगे-देंगे खून”, शब्‍द बस यही सुनाई देते थे।

रण में जाने को युवक खड़े, तैयार दिखाई देते थे।


बोले सुभाष,” इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है।

लो, यह कागज़, कौन यहॉं, आकर हस्‍ताक्षर करता है?

इसको भरनेवाले जन को, सर्वस्‍व-समर्पण करना है।

अपना तन-मन-धन-जन-जीवन, माता को अर्पण करना है।


पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है।

इस पर तुमको अपने तन का, कुछ उज्‍जवल रक्‍त गिराना है!

वह आगे आए जिसके तन में, भारतीय ख़ूँ बहता हो।

वह आगे आए जो अपने को, हिंदुस्‍तानी कहता हो!


वह आगे आए, जो इस पर, खूनी हस्‍ताक्षर करता हो!

मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए, जो इसको हँसकर लेता हो!”

सारी जनता हुंकार उठी- हम आते हैं, हम आते हैं!

माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्‍त चढ़ाते हैं!


साहस से बढ़े युबक उस दिन, देखा, बढ़ते ही आते थे!

चाकू-छुरी कटारियों से, वे अपना रक्‍त गिराते थे!

फिर उस रक्‍त की स्‍याही में, वे अपनी कलम डुबाते थे!

आज़ादी के परवाने पर, हस्‍ताक्षर करते जाते थे!


उस दिन तारों ने देखा था, हिंदुस्‍तानी विश्‍वास नया।

जब लिखा था रणवीरों ने, ख़ूँ से अपना इतिहास नया।


9 टिप्‍पणियां:

  1. ये कविता मुझे भी बहुत ही पसंद रही है तुम इसे यहाँ लेकर आए बहुत अच्छा किया
    महापुरुषों का जीवन प्रेरणा लेने के लिए होता है

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  2. पहली बार पढ़ी यह कविता. धन्यवाद. सुभाष जी के विचारों पर आधारित एक पोस्ट मेरे ब्लॉग Dharohar पर भी. आपका स्वागत रहेगा.

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  3. सारी जनता हुंकार उठी- हम आते हैं, हम आते हैं!
    माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्‍त चढ़ाते हैं!

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    बड़ी ओजस्वी कविता है।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. सुभाष जी के लिए अपार श्रद्धा है मन में। उनका आज़ादी के लिए संघर्ष, देशवासियों को प्रेरित करके एकजुट करना, महिलाओं को भी अपनी फौज में जगह देना, काश हम भी उसी दौर में जन्म लिए होते।

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  6. U did a great job after bringing this poem to the post .. i like it so much .. i like poem on DESHBHAKTI and DESHBHAKT ........

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  7. sirf padhne se kya hota hai? unko ji kar bhi to dekho!
    jo kar gaye kurbaan apni jidagi watan ke naam, unke naam ka tilak roj apne maathe par saja kar to dekho.

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  8. aacha post kiyaa aapne

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