सोमवार, 11 मई 2009

उत्तर प्रदेश का चुनावी परिदृश्य -2

शेष से आगे

बसपा की २००७ की चुनावी सफलता के कई आयाम थे। उनमे से एक प्रमुख आयाम चुनाव आयोग की कडाई औरलोगों का वोट देने कम निकलना था चुनाव आयोग की कडाई के चलते बड़े पैमाने पर होने वाली बूथ कैप्चरिंग सिर्फ़ रुकी बल्कि समाज के निचले तबके के लोगों ने, जो बसपा के प्रतिबद्ध वोटर हैं, खुल कर वोट दिया। अन्यवर्गों के लोग हमेशा से कम वोट देते रहे थे और ऐसा ही उन्होंने उस बार भी किया।
इसके अतिरिक्त बसपा को एक प्रमुख लाभ उम्मीदवारों की फ्रेशनेस का भी मिला बसपा के अधिकतर उम्मीदवारचुनावी जंग में ही नही राजनीति में भी नए थे जिसका फायदा उन्हें उनकी जातियों के वोटों के रूप में भी मिला
इसके अलावा लोगों की सपा सरकार के प्रति नाराजगी भी महत्वपूर्ण रही थी। एक नारा भी बहुत जोर शोर से चलाथा
चढ़ गुंडों की छाती पर
मुहर लगाओ हाथी पर

लोकसभा और विधान सभा और बसपा

विधानसभा चुनावों के उलट लोकसभा चुनावों का परिदृश्य अलग होता है। एक सीधा सा गणित देखते हैं मान लेतेहैं एक लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की सीटें आती हैं (जैसा उत्तर प्रदेश में औसत है.) तो कोई एक पार्टी उसलोकसभा क्षेत्र के चार विधान सभा क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी पांचवी में हार के चलते पूरी सीट हारसकती है। अतः विधानसभा में प्राप्त सीटें सारे समीकरण पहले जैसे रहने के बावजूद उसी अनुपात में लोकसभासीटों में बदल जाएँ ये जरूरी नही है।
इसके अतिरिक्त विधान सभा चुनाओं की तरह के मुद्दे कमसे कम उत्तरप्रदेश में लोकसभा चुनावों में तो लागू नहीरहते उदहारण के लिए कांग्रेस का पिछले दो लोकसभा और विधान सभा चुनावों में प्रदर्शन देख लें पिछले दोविधानसभा चुनावों में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में २५ के आस-पास सीटें मिली जबकि लोकसभा में यह संख्या -१०रही। साफ़ है कि कांग्रेस विधानसभा चुनावों में बुरा प्रदर्शन करने के बाद भी लोकसभा चुनावों में अपेक्षाकृत कमबुरा प्रदर्शन करती रही है।

बसपा की इन चुनावों में कमियां

बसपा ने इन चुनावों में दूसरी पार्टियों से आनेवाले लोगों को जमकर टिकट दिया है दूसरी पार्टियों से आने वालेलोग जहाँ अपना कुछ जनाधार लेकर आते हैं वहीँ कुछ नकारात्मक आधार भी ले आते हैं। एक उदाहरण के लिएबसपा के अम्बेडकरनगर से उम्मीदवार राकेश पाण्डेय की बात करें तो वहां पर उनके परिवार की बसपा के वहीँ सेमंत्री और प्रमुख नेता रामअचल राजभर से शत्रुता रही है अब बसपा के कैडर के लिए राकेश पाण्डेय के पक्ष मेंप्रचार कर पाना कठिन लग रहा है। उल्लेखनीय है कि यह सीट बसपा प्रमुख मायावती की सीट रही है और इस सीटपर बसपा की हार का खतरा नजर रहा है।
लब्बोलुआब यहं है की बसपा ने फ्रेशनेस का लाभ गवां दिया है जिसका असर लोकसभा के चुनाव परिणामों मेंनजर आना लाजिमी है।

नारा हट गया!


लगता है बसपा के कार्यकर्ताओं को चढ़ गुंडों की छाती पर..... नारा प्रयोग करने की भी हिदायत सी दी गई है इन चुनावों में इस नारे का प्रयोग नजर नही आया। कारण सपा सांसद अफजाल अंसारी और उनके भाई मुख्तारअंसारी दोनों बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, बाहुबली नेता और पूर्व विधायक हरिशंकर तिवारी के परिवार मेंतीन लोकसभा टिकट दी गए। इसके अतिरिक्त बसपा के अनेक विधायकों की कारगुजारियां लोगों के सामने हैं

भाजपा और कांग्रेस की स्थिति भी जैसी बुरी थी वैसी नजर नही रही है
जारी है

3 टिप्‍पणियां:

  1. चुनाव समीक्षा अच्छी कर रहे हैं आप.

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  2. अंसारी द्वय तो (नये अवतार में) समाज सेवी हैं! :)

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  3. गम्भीर राजनैतिक विश्लेषण पढने को मिल रहा है। अगली कडी की भी प्रतीक्षारहेगी।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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hamarivani

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