सोमवार, 1 सितंबर 2008

सोफ्टवेयर बाजार

सबसे पहले सभी लोगो को धन्वाद जिन्होंने हमारा पिछला पोस्ट पढ़ा और प्रतिक्रिया दी। लवली जी आपने ये पिछला पोस्ट निश्चित रूप से पढ़ा है हमारे ब्लॉग पर जिस पर अब हमने लिखना बंद कर दिया है। आपने वह भी प्रतिक्रिया दी थी इसलिए आपका ये लगना सही है की आपने इसे कहीं पढ़ा है। आपको एक ही चीज दो बार पढ़वाने के लिए माफ़ी चाहती हूँ।
पिछले दिनो मै दिल्ली में थी। उस समय एक दोस्त से मिलने गयी थी। नयी टेक्नालजी को पसंद करने वालो मे से एक रही है वो हमेशा से और जब मै उसे मिलने गयी तो वो अपने डेस्कटॉप से उलझी हुई थी. उसके साथ गुज़रे दो घंटे पूरे-पूरे कंप्यूटर के पास ही गुज़रे.वो माइक्रोसॉफ्ट का ऑपरेटिंग सिस्टम प्रयोग करती है और उस समय वो कुछ अपडेट तलाश रही थी.
मैने उसे ढेर सारी इधर उधर की वेबसाइट्स पर घूमते पाया मैने कहा कि तू सीधे माइक्रोसॉफ्ट की वेबसाइट पर अपडेट क्यों नही देखती तो उसने बताया की ढेर सारे अपडेट्स के लिए माइक्रोसॉफ्ट प्रामाणिक ऑपरेटिंग सिस्टम चाहता है जो मेरे पास है नही, तो फिर इधर उधर से ही खोजना पड़ेगा।
उसके पास से तो मै चली आई पर सोचती रही। मुझे पता है कि पयरेटेड सॉफ्टवेर प्रयोग करने वालों कि संख्या अपार है और इससे सॉफ्टवेर बनाने वाली कंपनियों को बड़ा घटा होता है और इसीलिए ये कंपनियाँ अपडेट्स और सपोर्ट उन्ही को उपलब्ध करती हैं जो प्रामाणिक वर्ज़न प्रयोग करते हैं। पर आश्चर्य कि बात है कि इस समस्या से निपटने के लिए अभी तक कुछ ठोस किया नही गया है।
फर्ज़ कीजिए कि आपको एक कंप्यूटर खरीदना है। आप के पास दो विकल्प होंगे आप अस्म्बॅल्ड कंप्यूटर ले या फिर ब्रांडेड। अस्म्बॅल्ड में आसानी यह रहती है कि आप वो चीज़ें तय कर सकते है जो आपको चाहिए वो भी कम कीमतों में. फिलहाल दोनो तरीकों मे आपको सॉफ्टवेर प्रामाणिक लेने के लिए अच्छा ख़ासा पैसा ज़्यादा खर्च करना पड़ेगा. जैसे माइक्रोसॉफ्ट का एक्स पी लेने के लिए आपको कोई 6000 रुपये ज़्यादा चाहिए जब कि पयरटेड एक्स पी आपको अक्सर मुफ़्त मिल जाता है. अगर आपको खरीदना भी पड़े तो कीमत कोई 200-300 के आस पास बैठेगी. काम दोनो वैसे ही करते हैं. अपडेट्स भी कहीं ना कहीं से मिल ही जाते हैं. अब कौन भला ओरिजिनल के चक्कर में पड़े
जी हाँ मै जानती हूँ कि यह उचित नही है, यह चोरी है लेकिन 300 और 6000 में फ़र्क काफ़ी बड़ा होता है.मै भी नैतिकता के सवाल मे उलझी रही.
मैने सोचा किसी व्यावहारिक और नैतिक इंसान से बात कि जाए. अब कवि से बड़ा नैतिकता का पैरोकार कौन होता है. मैने रौशन से बात की.कवि लोग सीधी बाते करने में भरोसा नही रखते मैने आपसे पहले भी अर्ज़ किया था.
रौशन ने शुरुआत ऐसे ही की। उसने मुझसे दो बातों पर विचार करने को कहा.
पहली बात टी-सिरीज़ कंपनी का भारतीय संगीत व्यापार में योगदान और दूसरी बात भारतीय वित्त मंत्रालय की स्वेच्छिक आय घोषणा योजना.
मेरा नाराज़ होना स्वाभाविक था मैने उसे बताया की मै अभी कुछ नैतिक और टेक्नोलॉजिकल मुद्दो पर चर्चा चाहती हूँ.
वो बताता रहा इन दोनो के बारे में
शायद मेरा नाराज़ होना ग़लत था
उसका कहना था कि सॉफ्टवेर कि ऊँची क़ीमतें लोगो को पयरेसी कि ओर धकेल रही हैं। अगर माइक्रोसॉफ्ट अपने सॉफ्टवेर कि कीमतों में कमी करके उन्हे प्रासंगिक बनाता है तो शायद वो ज़्यादा से ज़्यादा लोगो को ओरिजिनल सॉफ्टवेर खरीदने के लिए राज़ी कर पाएगा और इस तरह शायद उसका फयडा भी ज़्यादा हो.टी सिरीज़ और उसके बाद और संगीत कंपनियों का अनुभव बताता है कि फ़ायदा हो सकता है. कंपनियों को थोड़ा व्यावहारिक कदम उठाने होंगे.उसकी सोच है कि अगर कंपनियाँ पयरटेड सॉफ्टवेर प्रयोग करने वालों को थोड़ी कीमत में प्रामाणिक मान लें और उन्हे अपडेट्स ऑनलाइन उपलब्ध करने का फ़ायदा दिखाएँ तो बहुत से लोग अपने सॉफ्टवेर को प्रामाणिक बनाने के लिए कुछ पैसे खर्च करने को तैयार हो सकते हैं
वस्तुतः इस तरह कंपनियाँ उस उपभोक्ता से भी कुछ पा लेंगी जिससे उसे कुछ भी नही मिलना था, और उपभोक्ता भी कंपनियों से जुड़ सकेंगे।विचार अच्छा हो सकता हैआज जब कंप्यूटर लोगो कि ज़रूरत बनता जा रहा है तो सॉफ्टवेर कि ऊँची कीमते ना उपभोक्ताओं के हित में हैं ना ही उत्पादकों के हित में।
मुझे याद है कि मेरे अपने लॅपटॉप का ऑपरेटिंग सिस्टम लॅपटॉप के साथ मिला था अगर मुझे खरीदना होता तो शायद मै भी नैतिक ना रह पाती

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2 टिप्‍पणियां:

  1. आपने सही लिखा पायरेटेड सॉफ्टवेर के लिए इनकी ऊँची कीमतें ही जिमेदार है जब बाज़ार में ५० रु. में XP मिल जाती है तो कोई ज्यादा कीमत क्यों देगा

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hamarivani

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