गुरुवार, 11 सितंबर 2008

बंद चीजें

कान कसकर बंद करने भर से
सुनाई पड़ना बंद नही होता
चीज़ें दिखती रहती हैं
आँखें बंद कर लेने पर भी
और कुछ न कुछ बोल जातें हैं
सिले हुए होंठ भी.


हम बस ढोंग करते हैं
न देखने, न सुनने
या फिर न बोलने का
और मन को समझा कर
कोशिश करते हैं ख़ुश रहने की
अपनी दुनिया में
अपनी बनाई सीमाओं में.


पर शायद
सोचना बंद हो जाता होगा
दिमाग़ बंद कर लेने से
नही तो कैसे चलता व्यापार
नफ़रत के सौदागरों का

9 टिप्‍पणियां:

  1. पर शायद
    सोचना बंद हो जाता होगा
    दिमाग़ बंद कर लेने से
    नही तो कैसे चलता व्यापार
    नफ़रत के सौदागरों का
    बहुत अच्छा।

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  2. सही लिखा है..पर सब ऐसे नही होते ..समस्या यह है "अकेला चना भांड नही फोड़ता"

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  3. पर शायद
    सोचना बंद हो जाता होगा
    दिमाग़ बंद कर लेने से
    नही तो कैसे चलता व्यापार
    नफ़रत के सौदागरों का


    -बहुत बढिया.

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  4. भई वाह..
    मजा आ गया..
    उम्मीद है निरन्तरता बनी रहेगी..

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  5. समय के अनुकूल कविता है
    आज हमें दिमागों को खोलने की ही जरुरत है

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hamarivani

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