कान कसकर बंद करने भर से
सुनाई पड़ना बंद नही होता
चीज़ें दिखती रहती हैं
आँखें बंद कर लेने पर भी
और कुछ न कुछ बोल जातें हैं
सिले हुए होंठ भी.
हम बस ढोंग करते हैं
न देखने, न सुनने
या फिर न बोलने का
और मन को समझा कर
कोशिश करते हैं ख़ुश रहने की
अपनी दुनिया में
अपनी बनाई सीमाओं में.
पर शायद
सोचना बंद हो जाता होगा
दिमाग़ बंद कर लेने से
नही तो कैसे चलता व्यापार
नफ़रत के सौदागरों का
पर शायद
जवाब देंहटाएंसोचना बंद हो जाता होगा
दिमाग़ बंद कर लेने से
नही तो कैसे चलता व्यापार
नफ़रत के सौदागरों का
बहुत अच्छा।
सही लिखा है..पर सब ऐसे नही होते ..समस्या यह है "अकेला चना भांड नही फोड़ता"
जवाब देंहटाएंपर शायद
जवाब देंहटाएंसोचना बंद हो जाता होगा
दिमाग़ बंद कर लेने से
नही तो कैसे चलता व्यापार
नफ़रत के सौदागरों का
-बहुत बढिया.
बहुत सुन्दर कविता लगी...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है बधाई
जवाब देंहटाएंभई वाह..
जवाब देंहटाएंमजा आ गया..
उम्मीद है निरन्तरता बनी रहेगी..
wonderful poem
जवाब देंहटाएंinteresting poem...
जवाब देंहटाएंसमय के अनुकूल कविता है
जवाब देंहटाएंआज हमें दिमागों को खोलने की ही जरुरत है