गुरुवार, 20 नवंबर 2008

बेकार की फतवेबाजी

मौलाना फिरंगीमहली ने बच्चन की मधुशाला के ख़िलाफ़ फतवा जारी किया है।उन्होंने बताया कि फतवा जारी करने से पहले उन्होंने मधुशाला को पढ़ा औरकुछ पंक्तियों को गैर इस्लामी पाया।

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इस्लाम की व्याख्या कैसे करते हैं हमेंनही पता आख़िर वो मौलाना हैं इस्लाम की जैसे चाहे व्याख्या करने को आजादहैं पर वो साहित्य की व्याख्या करने की हैसियत में आते हैं या नही इसपर हमें सख्त ऐतराज है।

बच्चन ने मधुशाला के साथ ही उमर खैय्याम की रुबाइयों का भी अनुवादकिया। इन में भी मय, मधुशाला और साकी जैसी चीजें बड़ी मात्रा में आई हैं औरमधुशाला पढने वाला और समझने वाला शख्स यह बता सकता है कि इन चीजों का दार्शनिकता से गहरा नाता है।बच्चन ने मधुशाला कि जो प्रस्तावना लिखी है वह बेहद खूबसूरत है और मधुशाला की दार्शनिक समझ को पाठकोंके सामने पेश करती है। शायद मौलाना साहब ने उससमझने की कोशिश नही की होगी।

मौलाना साहब यह भी नही समझ पाये कि शराब के मायने क्या हैं और इस्लाम से उसका क्या सम्बन्ध है।

जब बच्चन बताते हैं कि मधुशाला प्रेम सिखाती है तो वह मजहबी जुनूनों को कटघरे में खड़ा करते है और इंसानी रिश्तोंके महत्त्व को बतलाते हैं। मजहबों की तारीख बताई जा सकती है पर इंसानी रिश्ते तारीखों से परे हैं और अगरमजहबी जूनून इन रिश्तों में ज़हर घोल रहे हैं तो ये मजहब को समझना होगा कि वो इन जुनूनों के ख़िलाफ़ खुलकर सामने आए कि उस पर ऊँगली उठाने वालों के ख़िलाफ़।

हमने मधुशाला और बच्चन की शराब से जुड़ी जितनी चीजें पढ़ी हैं हर जगह प्रेम, दार्शनिकता और जिंदगी के जज्बेको पाया है और इसीलिए हमें पता है कि जो अदब को समझने वाले होंगे वो पढ़ते रहेंगे इसे।

फिरंगीमहली साहब ये फतवा बेकार की कसरत है, इन बातों में पड़ने की जगह अगर बड़े और जरूरी मुद्दों परध्यान दिया जाय तो बेहतर होगा।

6 टिप्‍पणियां:

  1. रिलेटीविटी की थ्योरी पढ़ कर मैं भी कह सकता हूं कि यह ईश्वर के नियमों के साथ मजाक है! उससे मैं ही चुगद साबित हूंगा।
    ये फतवीय सज्जन भी वैसे ही हैं!

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  2. उस मय से नही मतलब दिल जिससे हो बेगाना
    मक़सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है
    अब दिल में खींचने वाली चीजं को फिरंगीमहली कैसे जानेगे
    तो उनकी नासमझी जायज है
    अच्छा लिखा है

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  3. रौशन, तुम भी न! अब इन मौलाना के पास कुछ काम वाम करने को बचा नही है तो ये सब ऐसे ही फतवा ठोकेंगे या फ़िर हम सबको आपस में लड़ायेंगे. ये क्या जाने कवि और कविता की बातें. वैसे ये फतवेबाजी का खेल अच्छा है, इन्हें खेलने दो, ज्यादा दिन नही खेल पाएंगे, और लुढ़क जाएँगे. मेरा मतलब, इन सब बातों को सदा के लिए खुदा हाफिज़ कह देंगे.

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  4. रौशन, आपने सही मुद्दा उठाया है। इन फतवेबाजों को और किसी बात से मतलब नहीं है। यह लोग यह भी जानने की कोशिश नहीं करते कि किसी कवि या शायर ने कौन सी बात किस संदर्भ में कही है। हरिवंश राय बच्चन की इस कालजयी पुस्तक पर इस तरह का आरोप नया नहीं है। इस बार किसी ने जानबूझकर इस फतवे को हासिल किया है, जिससे माहौल गरमाया जा सके। लेकिन इन सब बातों से उस किताब का महत्व खत्म नहीं हो जाता। फतवेबाजों के हिसाब से मिर्जा गालिब और दाग देहलवी जैसे शायरों को तो सूली पर लटका देना चाहिए जिन्होंने शराब के बारे में न जाने क्या –क्या लिखा है। यह सही है कि इस्लाम में शराब हराम करार दी गई है और मेरी नजर में वह सही भी है। लेकिन अगर हिंदी की किसी किताब में उस शब्द का इस्तेमाल किसी प्रतीक के रूप में किया गया है तो उस पर किसी को न तो फतवा देना चाहिए और न ही बयानबाजी करनी चाहिए। यह ऐसा ही हो रहा है कि लोग जेहाद के बारे में ज्यादा न जानकार उसे सीधे मुसलमानों और आतंकवाद से जोड़ रहे हैं। न तो यह कहने वाले लोग जेहाद और इस्लाम के बारे में कुछ जानते हैं और न ही बच्चन की मधुशाला पर फतवा देने वाले उस बारे में कुछ जानते हैं।

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  5. रौशन तुमने सही बात कही है
    जिसने मधुशाला को समझा होगा वो ऐसा ग़लत इसके बारे में सोच भी नही सकता और जिसने समझा ही नही है उनकी राय का कोई मतलब नही है

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  6. जौक़ ने जैसा के फ़रमाया-

    मदरसे के जो हैं बिगड़े हुये मुल्ला
    मैखाने ले आओ,संवर जायेंगे...

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