शनिवार, 6 दिसंबर 2008

एक धुंधलाती हुई शाम की यादें

दिनांक 30 नवम्बर 1992 , फैजाबाद शहर के पास एक स्कूल के छात्रावास के बच्चों का ध्यान खींचते हैं धड़धडातेहुए उनके पास रहे सी आर पी ऍफ़ के ट्रक। बच्चों का खेल बंद हो जाता है और वो अपने कमरों की खिड़कियों सेचिपक जाते हैं। थोडी देर में स्कूल प्रबंधन से आधिकारिक सूचना जारी हो जाती है
स्कूल अनिश्चितकाल के लिए बंद और जल्दी से जल्दी छात्रावास खाली किया जाना है।
आख़िर बड़ों की लड़ाई चल रहीहो तो बच्चे पढाई कैसे करसकते हैं। उनकी कक्षाएं और
छात्रावास तो सी आर पी ऍफ़के अस्थायी कैम्प बनेंगे राहत की बात इतनी है किकैम्प अस्थाई होंगे।
उन बच्चों में एक बारह साल का बच्चा था अपने सभी साथियों कीतरह वह भी खेल रहा था , अपने सभी साथियों की तरह वह भी खुशथा कि घर जाने का मौका मिल रहा है लेकिन साथ ही साथ उसकादिल एक अनजाने डर से भरा जा रहा था।
30 नवम्बर 1992 की उस शाम वह महसूस कर सकता था कि सीआर पी ऍफ़ के ट्रक जो धूल उड़ाते हैं वो एक घुटन सी पैदा करती है। वह महसूस कर सकता था कि जब ठीक ठाकचल रहे समाज में आपात प्रबंधनों की नौबत आए तो यह खतरनाक होता है.
पिछले कुछ दिनों से प्रदेश के मुख्यमंत्री के , देश के प्रधान मंत्री के और ढेर सारे नेताओं के लगातार बयान रहे थेकि सबकुछ शांतिपूर्ण निपट जायेगा और सभी के साथ उसे भी भरोसा था पर राजनीति में रूचि रखने वाला वहबारह साल का बच्चा उन सी आर पी ऍफ़ के ट्रकों से असहज हो चला था।
वह एक अजीब सा दौर था
दरकती आस्थाओं का दौर
टूटते मिथकों का दौर
निस्तेज जो रहे नायकों का दौर
विभाजनों का दौर
अभी थोड़े ही दिन पहले एकाएक आदर्शवादी युवा सुनील कुमारों के नाम के आगे सिंह, त्रिपाठी , यादव और वर्माजुड़ गए थे
अभी कुछ दिन पहले जाति के विभाजनो की आग में युवाओं ने ख़ुद को, अपने सपनो को और उसके साथ समाजको झोंका था।

ये एक टूटन थी


अभी कुछ दिन पहले एक युवा नायक, जो देश को इक्कीसवीं सदी में ले जाने के सपने देख और दिखा रहा था, नेपिछले दिनों की रूढियों के सामने घुटने टेके थे
अभी कुछ दिन पहले एक मिस्टर क्लीन अचानक से बदरंग हो उठा था
अभी कुछ दिन पहले एक दिलों पर राज कर रहा सुपर स्टार अचानक नजर से गिर गया था
ये आदर्शों और नायकों का पतन था
ये दूसरी टूटन थी।

अभी कुछ दिन पहले समाज के सामने अर्थव्यवस्था का नया संकट पड़ा था पुरानी आस्थाएं , सोचें, तौर-तरीके छोड़ कर पूरी अर्थव्यवस्था एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही थी एक परिवर्तन का दौर जब हर तरफ़आशंकाएं होती हैं जब हर तरफ़ आने वाली परिस्थियों को लेकर भय होता है
ये एक और टूटन थी

इन दरकती हुई आस्थाओं के दौर में जब कुछ भी पहले जैसा नही दिख रहा था ट्रकों से उड़ी धूल पूरे वातावरण कोएक घुटन से भर दे रही थी , उस बच्चे ने महसूस किया कि वो जाने कहाँ गया है। उसने महसूस किया कि वोकुछ नही समझ पा रहा है


आज सोलह साल और बीत चुके हैं उस ३० नवम्बर 1992 की धुंधलाती शाम और उसके बाद आने दिनों ने बहुतकुछ बदल कर रख दिया
आज 6 दिसम्बर 2008 को जब मुंबई हमलों के चलते विहिप शौर्य दिवस और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटीकाला दिवस नही माना रही है तो एक 28 साल का युवा ये जानने का बहुत इच्छुक है कि क्या हम उन दिनों कोपीछे छोड़ कर आगे नही बढ़ सकते? आज जब हम एकता का प्रदर्शन कर रहे हैं तो क्या इसी एकता को आगे नहीबढ़ाते रख सकते? क्या रखा है एक विवाद को यूँ ही आगे बढाते जाने में
अतीत का बोझ सबके लिए परेशानी बन रहा है तो क्यों उसे उतार फेंके और कदम से कदम मिला कर चल पड़ेंएक नए भविष्य की ओर
क्या ऐसा हो पायेगा?

21 टिप्‍पणियां:

  1. good, choose always attractive photos in your article. This is a suggestion. you need not to accept it.

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  2. मेरी उम्र तो नौ साल ही हुई थी
    और मुझे तो राजनीती और धर्म की जानकारी तक नही थी.
    उस छः दिसम्बर को क्या हुआ ये पता लगने में कई साल बीत गए थे.
    पर एक चीज जो साफ़ हुई समझ साफ़ होने के बाद वो ये थी उस साल उस दिन एक जहरीला सांप फन खोल कर खड़ा हो चला था
    पिछले सोलह सालों से हम तिल तिल कर उस दंश को भुगत रहे हैं
    लोग कहते हैं उस दिन हिंदुत्व की जीत हुई थी
    वो शौर्य दिवस मनाते हैं.
    लोग कहते हैं उसदिन काला दिन था वो काला दिवस मानते हैं
    पर देश के लिए उस दिन एक हार थी जब अतीत के झगडे भविष्य पर छाने को आगे आ चुके थे
    तुम्हारा सवाल सही है क्या हम उस बोझ को फेंक नही सकते

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  3. अगर हम ये बोझ नही फेंक सके to ये बोझ हमें ही ख़त्म कर देगा

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  4. ek aur secular pralaap
    ayodhya ki mukti ka matlab tum kaise samjhoge

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  5. कम से कम मुंबई के बहाने नफरत की एक सालगिरह तो नही मनाई जा रही है

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  6. itihaas padhne vaale aap ko saara itihaas padney ko kehaegae .
    mujhe lagtaa haen jarurat haen vartmaan ko swaarnae ki apne desh mae aur apne ander badlaav laane ki
    laekhan hamesha ki tarah achcha lekin ab in cheezo sae judaav yaa virodh dono hii bemani lagtey haen

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  7. रौशन जितना खूबसूरत आपका ब्लॉग है..उससे कहीं ज्यादा अच्छी आपकी सोच और लेखन है..और अगर हम इस छह दिसंबर के प्रसंग को यहीं छोड़ दें तो ज्यादा अच्छा होगा..क्योंकि ये एक ऐसा नासूर है..जिसकी चपेट में हम सभी हैं...हिंदुत्ववादियों के लिए ये अगर शौर्य दिवस है...तो हमारे जैसी सोच रखने वालों के लिए काला दिवस औऱ महज़ सत्ता लोलुप गंदे नेताओं की घटिया राजनीति ...जिसने जयश्रीराम की हुंकार भरकर एक ऐसी लहर चलाई जिसकी चपेट में आम भारतीय(जो आमतौर पर भावुक होतें हैं)आया...लेकिन असली कमाई हुई...सत्ता में बैठे इन फनधारियों की ...जिनकी खुद की ना जात है ना धर्म और ईमान की बात इनके लिए ना की जाए तो ज्यादा अच्छा होगा........

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  8. पता नहीं जी, मुझे तो लगता है इस देश की घुमावदार राजनीति से कुछ मिल न पाया। रामलला टेण्ट में हैं। आतंक का असुर और विकराल है। बहुजन-मण्डल-कमण्डल में समाज विभक्त है। जिसे देखो, वही पिपिहरी अलग बजा रहा है।

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  9. इस तारीक के बेजा इस्तेमाल सब अपने अपने मतलब के लिए करते है रोशन .....पर तुमने जिस तरह से एक मन की पीड़ा रखी है वो एक आम भारतीय का खास तौर से युवा पीड़ी का दर्द है ......सच में अकभी कभी चिल्ला कर कहने का मन होता है इन धर्म के ठेकेदारों से ,नेताओं से .....बख्श दो हमें अब

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  10. आश्चर्य है कि हमें मस्जिद गिराए जाने का दिन याद है और ऐसी मस्जिद जिस में कोई नमाज़ नहीं पढ़्ता था। और हम सोमनाथ का ज़िक्र भी नहीं करते!

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  11. .

    @cmpershad

    आश्चर्य है कि हमें मस्जिद गिराए जाने का दिन याद है और ऐसी मस्जिद जिस में कोई नमाज़ नहीं पढ़्ता था। और हम सोमनाथ का ज़िक्र भी नहीं करते!

    .

    moreover any of those feeling ashamed on 6-december, if they morne for somnath, mathura and thousands of such other temples of our history.

    .

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  12. achchha likha hai
    likhte raho par isse kuchh hoga?
    kisi ka kuchh bigdega?
    kal madir tha aj setu hai kal kuchh aur hoga

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  13. बाबरी मस्जिद याद है क्यूंकि हम २८ के हैं लेकिन इतिहास भूलने वाली चीज तो नही|

    सदियों की अनैतिकता को हम भूल गए? उस भूल को आजतक हमारी स्कूल की पुस्तकों में महिमामंडित किया जाता है, वो कुंठा कैसे निकले बाहर? बहुत आसान है कहना सहिष्णु बनो, क्या इसका ठेका हमने ही ले रखा है?

    कुंठा, आक्रोश को जब अनैतिक तरीके से दबाया जाता है तो वो बाबरी मस्जिद के विध्वंस सरीखे कुरूप रूप में बाहर निकलता है, जिसे हम और आप देख नही पाते.

    अच्छा होता जब हम ६ दिसम्बर के दिन पुरानी बातें भी याद रखते, लेकिन नही आज का युवा तो fashionable है.

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  14. BJP and its friends never understood indian tradition. Infact they were acting as followers of those old invaders .

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  15. सुंदर आलेख !
    उम्मीद रखें ये संक्रमण काल है और जल्दी ही ख़त्म होगा

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  16. जो यह कह्ते हैं कि वो इतिहास में हुई बात का बदला ले रहे हैं वो दरअसल उन आक्रान्ताओं के ही तरीके को अमल में ला रहे हैं

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  17. Roushan us time to ham navodaya mein the na...kafi sari cheezon se main bhi dar jaya karti thee.

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  18. 'चोर मचाये शोर' ये कहावत आज कितनी भी पुराणी क्यूँ न हो लेकिन आज भी बुरा से बुरा पापी जिस प्रकार अपने पापों को छिपाने के लिए अपनों द्वारा की गई आतंकी गतिविधियों का ठीकरा दुसरो के सिर फोड़कर ख़ुद साफ़ सुथरा इमानदार होने का प्रचार करता नज़र आता है वह आने वाली पीढी के लिए किसी बड़ी तबाही की बात को दर्शाता है| वैसे आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यहूदी व अमेरिकी पॉलिसी यही है की झूठ को इतनी बार और और ऐसे प्रभावी ढंग से बोला जाए की लोग उसे ही सच मान व समझ लें| विदेशी आतंकियों की इसी पॉलिसी पर पूर्णरूप से संघ परिवार एवं उसके सभी सहयोगी साम्प्रदायिक संगठन व सम्बद्ध राजनैतिक पार्टियाँ चलती नज़र आ रही है| मेरा चोर मचाये शोर कहना इसी ओर इशारा था| भारत में अपनी स्थापना से ही ये लोग अंग्रेजों के एजेंट के रूप में कार्य करते रहे है और देश के स्वतंत्र होते ही इन साम्प्रदायिक आतंकी लोगों ने देश में मुसलमानों के खिलाफ ही खून खराबे और लूटमार का दौर सिर्फ़ शुरू ही नहीं हुआ बल्कि तरह तरह की बहुसंख्यक हिन्दुओं को भी आतंकित करने के प्रयास किए| उसी कड़ी में 30 जनवरी 1948 को देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या भी इन्ही लोगों ने अपने सदस्य नाथूराम गोडसे जैसे आतंकवादी से करवा दी जबसे आज तक अनेकों क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने को देशप्रेमी बताते हुए यह लोग तेज़ी से ताक़तवर होते चले जा रहे हैं जिनके गंभीर परिणाम देश को भुगतने पड़ रहे हैं| कुछ घटनाएँ ये बताने के लिए काफी है कि किस तरह से पुलिस प्रशाशन, सरकार और तंत्र भी इनके साथ खड़ा दिखाई देता है और जाँच के आने पर सुई मुसलमानों कि तरफ़ मोड़ दी जाती है|24 अगस्त २००८ को जन्माष्टमी के दिन कानपूर शहर में राजीव नगर मोहल्ले में बम बनाते समय हुए धमाके में मरने वाले बजरग दल के नगर संयोजक भूपेंद्र सिंह और राजीव मिश्रा पुनः बजरंगदल कि आतंकी गतिविधियों ने.....जारी

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  19. 'चोर मचाये शोर' ये कहावत आज कितनी भी पुराणी क्यूँ न हो लेकिन आज भी बुरा से बुरा पापी जिस प्रकार अपने पापों को छिपाने के लिए अपनों द्वारा की गई आतंकी गतिविधियों का ठीकरा दुसरो के सिर फोड़कर ख़ुद साफ़ सुथरा इमानदार होने का प्रचार करता नज़र आता है वह आने वाली पीढी के लिए किसी बड़ी तबाही की बात को दर्शाता है| वैसे आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यहूदी व अमेरिकी पॉलिसी यही है की झूठ को इतनी बार और और ऐसे प्रभावी ढंग से बोला जाए की लोग उसे ही सच मान व समझ लें| विदेशी आतंकियों की इसी पॉलिसी पर पूर्णरूप से संघ परिवार एवं उसके सभी सहयोगी साम्प्रदायिक संगठन व सम्बद्ध राजनैतिक पार्टियाँ चलती नज़र आ रही है| मेरा चोर मचाये शोर कहना इसी ओर इशारा था| भारत में अपनी स्थापना से ही ये लोग अंग्रेजों के एजेंट के रूप में कार्य करते रहे है और देश के स्वतंत्र होते ही इन साम्प्रदायिक आतंकी लोगों ने देश में मुसलमानों के खिलाफ ही खून खराबे और लूटमार का दौर सिर्फ़ शुरू ही नहीं हुआ बल्कि तरह तरह की बहुसंख्यक हिन्दुओं को भी आतंकित करने के प्रयास किए| उसी कड़ी में 30 जनवरी 1948 को देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या भी इन्ही लोगों ने अपने सदस्य नाथूराम गोडसे जैसे आतंकवादी से करवा दी जबसे आज तक अनेकों क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने को देशप्रेमी बताते हुए यह लोग तेज़ी से ताक़तवर होते चले जा रहे हैं जिनके गंभीर परिणाम देश को भुगतने पड़ रहे हैं| कुछ घटनाएँ ये बताने के लिए काफी है कि किस तरह से पुलिस प्रशाशन, सरकार और तंत्र भी इनके साथ खड़ा दिखाई देता है और जाँच के आने पर सुई मुसलमानों कि तरफ़ मोड़ दी जाती है|24 अगस्त २००८ को जन्माष्टमी के दिन कानपूर शहर में राजीव नगर मोहल्ले में बम बनाते समय हुए धमाके में मरने वाले बजरग दल के नगर संयोजक भूपेंद्र सिंह और राजीव मिश्रा पुनः बजरंगदल कि आतंकी गतिविधियों ने.....जारी

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  20. Hai,this is bembem here so many times I thought to text u. sorry I couldn't write in hindi but next time sure m writing in hindi. maine kuch likha haibhejne ki koshish karungi.aapke blog se mujhe kafi protshahan mila.

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  21. @ बेम
    आपकी टिप्पणी देखकर बहुत अच्छा लगा
    आपका हमेशा स्वागात है और कभी भी आपको लगे कि आपको कुछ चर्चा करनी है तो जरूर याद कीजियेगा
    आप हमें roushan001@gmail.com पर मेल भी कर सकती हैं

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hamarivani

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