शनिवार, 18 अक्तूबर 2008

अब! जब कि

अब! जब कि
कुछ ही दिनों में हमारे रिश्ते
बीते दिनों की मीठी सी
याद बनकर रह जाने को हैं।

अब! जब कि
हमारी पहचान पुरानी किताबों के सूखे फूल
या अनायास ही लिखे कुछ शब्द देख
होठों पर आ जाने वाली
दर्द भरी मुस्कान बनकर रह जाने को है।

अब! जब कि
सारी शरारतें, सारे सपने
इन गुजरे सालों की
सारी दिलचस्प बकवासें
कुछ खोयी सी कहानियाँ बनकर रह जाने को हैं।

अब! जब कि
हम जानते हैं कि चेहरों पर चिपकी
ये मुस्कुराहटें झूठी हैं
और आंखों में बरस पड़ने को
तैयार हजारों मोती हैं।

अब! जब कि
रात भर नींद नहीं आती
डराता है आने वाला कल
जागी हुई आंखों को
और बचे हुए लम्हों को
कमजोर मुट्ठियों में रोकने की
बेकार कोशिशें जारी हैं।

अब! जब कि
झूठी उम्मीदों पर जीने लगें हैं हम
भीतर ही भीतर बेजार-बेबस हो
छुप-छुप रोने लगे हैं हम।

अब! जब कि
उठाती हैं सवाल
अपनी ही उँगलियाँ ख़ुद पर
और अन्दर बैठा कोई
संभालने, संवारने की
कुछ आखिरी कोशिशों में है निरंतर।

अब! जब कि
कुछ ही दिनों में
दूर, बहुत दूर हमें हो जाना है
और फ़िर याद करके अनकही बातों को
पछताना बस पछताना है।

पर अब भी
ह्रदय में मचलता सागर
होठों से नही निकलेगा
बुन लीं हैं हमने मुश्किलें ऐसीं
कि कोई रास्ता नही निकलेगा।

19 टिप्‍पणियां:

  1. koi apna koi pyara chootne lagta hai to aisa hi lagta hai.sundar abhivyakti hai.

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  2. mai aaj hi blogger par aayi hun aur aapki kavita dekhi hun sach men jab koi chhutne lagta hai to dil aise hi bura bura sa feel karta rahta hai.
    sach me jaise koi chhot raha ho haath se aur kuchh na ho paa raha ho khud se
    apne bahut khoob bayan kiya hai

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  3. aapko teen column wali theme blog ke liye kaise mili
    can you help me please

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  4. पर अब भी
    ह्रदय में मचलता सागर
    होठों से नही निकलेगा

    -----
    यत्न करें मित्र; चमत्कार होते ही हैं।
    बहुत सुन्दर लिखा।

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  5. बुन लीं हैं हमने मुश्किलें ऐसीं
    कि कोई रास्ता नही निकलेगा।

    kya khoob likha hai
    bahut achchha

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  6. पर अब भी
    ह्रदय में मचलता सागर
    होठों से नही निकलेगा
    बुन लीं हैं हमने मुश्किलें ऐसीं
    कि कोई रास्ता नही निकलेगा।
    बहुत अच्छी कविता है...बधाई...

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  7. Wah...bahut sunder! Yeh dil maange more to read from you Kaviji!

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  8. कविता पढ़ के पुरानी बातों का पुलिंदा सा आ गया जैसे जेहन में
    ऐसा लग रहा है जैसे कोई अपना बस अभी छूट के दूर जा रहा हो
    अच्छी बुनावट की है रौशन तुमने फीलिंग्स की

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  9. अतिसुन्दर श्रीमान कवि
    बहुत खूब लिख दिया है आपने

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  10. कविता सशक्त है, शिल्प और कथ्य दोनों ही दृष्टियों से.

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  11. पर अब भी
    ह्रदय में मचलता सागर
    होठों से नही निकलेगा
    बुन लीं हैं हमने मुश्किलें ऐसीं
    कि कोई रास्ता नही निकलेगा।
    Bahut khub likha hai Roshan Bhai, badhai. Mere blog par bhi swagat hai aapka.

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  12. अच्छी कविता है पर इतनी भी क्या निराशा ??
    ज्ञान जी की बात पर ध्यान दें.

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