शनिवार, 25 अक्तूबर 2008

हम सब सुशील कुमार सिंह के साथ हैं

एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें मेंफंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठककी।
इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्टमौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोटडाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित कियागया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील कोइरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया। इस समितिका संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादकअवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेशशर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाटकाम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं।यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंहको परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है। दूसरेप्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति काप्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा।शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिलऔर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने कीसाजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेपकरने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधीकार्यवाही की जाएगी। बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडियासंस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने कीजरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसीब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंनेकहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है औरसमाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंनेसंबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपीलकी।भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय गया है जब वेब माध्यमों से जुड़ेलोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यहकिसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा हमला करने कामामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे। एकजुटता और संघर्ष की इसका कारगर इलाज है। विस्फोट डाट कामके संपादक संजय तिवारी ने कहा- ”पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों परआलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना कोस्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता कोउजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।लखनऊ सेफोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर चुके हैं।लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्किवन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग नेउत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भीसाजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइटके गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बातअलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है। बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज नेभोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गएफैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की औरइस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की। बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडियाके संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेबमाध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ाजाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकिउन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है।हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़ेलोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता केनाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। परउन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़तीजाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना कोसकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। बैठक में हिंदी ब्लागों के कईसंचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।पाठकों से अपीलः अगर आप भी कोई ब्लाग यावेबसाइट या वेब पोर्टल चलाते हैं और वेब पत्रकार संघर्ष समिति में शामिल होना चाहते हैं तोपर मेल करें। वेब माध्यमों से जुड़े लोगों का एक संगठन बनाने की प्रक्रिया शुरू कीजा चुकी है। आप सबकी भागीदारी का आह्वान है। लखनऊ की पुलिस दिल्ली पहुंची.लखनऊ, 24 अक्टूबर। दिल्लीके वरिष्ठ पत्रकार एक मीडिया वेबसाइट के प्रमोटर सुशील कुमार सिंह से पूछताछ के लिए लखनऊ की पुलिसदिल्ली भेजी गई है। हिन्दी और अंग्रेजी की एक वेबसाइट में प्रसारित कुछ अंशों को लेकर यहां के गोमतीनगर थानेमें शिकायत दर्ज कराई गई थी। जिसके बाद पुलिस की टीम सब इंस्पेक्टर राजीव सिंह के नेतृत्व में दिल्ली भेजीगई।मीडिया के कंटेन्ट को लेकर इस तरह की कार्रवाई यदाकदा ही होती है। किसी वेबसाइट को लेकर इस तरह कीकार्रवाई पहली बार होती नजर रही है। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को लेकर समय-समय पर नियम-कानूनकी बात होती रही है पर वेबसाइट को लेकर पुलिस की तत्परता पहली बार नजर रही है। खासबात यह है किभारत में अभी वेबसाइट को लेकर कोई नियम-कायदे बने ही नहीं है। इसके अलावा इस मामले में जिन अंशों कीचर्चा की रही है, उसमें किसी का नाम तक नहीं है। पत्रकार सुशील कुमार सिंह जनसत्ता, एनडीटीवी और सहारान्यूज चैनल से जुड़े रहे हैं। दिल्ली पहुंची पुलिस टीम ने इस सिलसिले में सुशील कुमार सिंह को पूछताछ के लिएअलग जगह पर बुलाया। इस पूरे मामले की जनकारी पुलिस के आला अफसरों को भी नहीं थी। इंडियन फेडरेशनऑफ वर्किग जर्नलिस्ट के अध्यक्ष के विक्रम राव ने इस प्रकरण को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा-कंटेन्ट कामामला जब मीडिया से जुड़ा हो तो ऐसे मामलों में पुलिस का हस्तक्षेप उचित नहीं है। ऐसे मामलों को बातचीत केजरिए ही सुलङाया सकता है। गोमतीनगर थाने के एसओ रूद्र कुमार सिंह ने इस मामले की पुष्टि करते हुए कहाकि सुशील कुमार सिंह के खिलाफ यहां शिकायत दर्ज कराई गई थी जिसकी विवेचना के लिए पुलिस दिल्ली भेजीगई है। इस मामले की जनकारी मिलने के बाद लखनऊ के कुछ पत्रकारों ने पुलिस और प्रशासन के आला अफसरोंको पूरी जनकारी दी और हस्तक्षेप करने को कहा ताकि बेवजह किसी का उत्पीड़न किया सके। गौरतलब हैकि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफतत्कालीन एसपी ने सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसेगिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था।इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यहमामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली।जानकारी के मुताबिक संबंधित वेबसाइट के गपशपजसे कालम को लेकर यह शिकायत दर्ज कराई गई। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्रनहीं किया गया है। पत्रकार सुशील कुमार सिंह ने कहा-यह अद्भुत मामला है। जहां किसी का नाम भी हो, वहशिकायत दर्ज करा दे और पुलिस पूरी तत्परता से वेबसाइट की जंच-पड़ताल करने निकल पड़े।http://aloktomar.com/ तथा http://khabriadda.blogspot.com/ से साभार
aloktomar@hotmail.com

6 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. माफ करें इससे यह जानकारी नहीं मिली कि आखिर सुशील कुमार सिंह के साथ ऐसा क्यों किया जा रहा है। हो सके, तो कुछ रौशनी इस बिन्दु पर भी डालें।
    दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. Rajneesh ji I have come to know that Susheel ji used to write about interanl stories about media groups in his blog. He wrote about HT group's some function in lucknow after death of Birla ji. After this very post HT group filed report against him.

    जवाब देंहटाएं
  4. सुशील कुमार सिंह गंभीर पत्रकारिता करने वाली दुनिया के लिए अजनबी नहीं हैं। सुशील कुमार सिंह ईमानदार पत्रकारों की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनके नाम की कसमें खाई जाती हैं। सुशील कुमार सिंह ईमानदारी और नेक नीयत की बेमिसाल हस्ती हैं। ऐसे व्यक्ति पर थूक कर एक संस्थान ने आसमान की ओर थूकने का काम किया है।
    सुशील कुमार सिंह ने क्या लिखा... ये पाठक पढ़ चुके हैं। उनकी वेबसाइट पर लिखी सभी चीजों को पाठक पढ़ कर किसी नतीजे पर पहुंच सकते हैं। उनकी लिखी कोई चीज ऐसी नहीं, जिससे निजी रंजिश की बू आए। खबरों के पार जाकर या यूं कहें कि आलोचना कर वो पत्रकारिता की दुनिया से जुड़े लोगों को अपने अंदर झांकने का एक मौका लगातार दे रहे हैं। लेकिन जो कुछ देखने-सुनने को तैयार नहीं हों... उन्हें कौन समझाए।
    सुशील जी ने 'उनकी आत्मा को शांति दे' को पाठक पढ़ चुके होंगे। अगर एचटी मीडिया समूह के कर्ताधर्ताओं ने उसे पढ़ा होता तो उनकी आंखें खुल जातीं। आखिर कैसे-कैसे लोगों पर संस्थान ने जिम्मेदारी दे रखी है? उन लोगों पर जो अपने मालिक के निधन की खबर तक सही नहीं छाप सकते। यही नहीं, एक दिन की गलती दूसरे दिन भी सही नहीं छाप सकते। मालिक के निधन की खबर में उनकी गलत तस्वीर छपना कोई मामूली भूल नहीं। इसे सुशील जी ने बताने का काम किया। कायदे से इसके जिम्मेदार लोगों को अपनी गलती का अहसास होना चाहिए था और आगे वो फिर इसे नहीं दोहराएं, ऐसी शपथ लेनी चाहिए थी। लेकिन हुआ क्या... वो अब छुपा नहीं है।
    सुशील जी ने उसी दिन के एक और वाकये का जिक्र किया है। मालिक को श्रद्धांजलि देने के बाद एक साथी के विदाई के बहाने पार्टीबाजी और उनकी शान में कसीदे पढ़े जाने का। किस संवेदनहीन समाज में जी रहे हैं हम। माना जाता है कि पत्रकार संवेदनाओं पर जीता है। लेकिन जिस मालिक के लिए क्षण भर पहले चंद लोग शोक में डूबे जा रहे थे... पल भर में वो ही मस्ती के मूड में आ गए।
    न नमक हलाली और न ही कर्तव्य बोध। और अगर किसी ने इसे बताने की कोशिश की तो उसे आपराधिक साजिश रच कर चुप कराने की कोशिश। शर्मनाक है ये सब।
    सुशील जी के संपर्क में आकर, उनसे सीख कर, उन्हें पढ़ कर पत्रकारों की एक पीढ़ी तैयार हुई है। इस पीढ़ी के पत्रकारों को सुशील जी की लिखी पंक्तियों में गीता के शब्द नजर आते हैं। ऐसे सुशील जी के लिखे शब्दों से अगर किसी के तन-बदन में आग लगती है तो लगती रहे। अगर ये चंद शब्द उन्हें अपराधी बनाते हैं तो हम सभी उनसे सीख कर दो शब्द लिखने वाले पत्रकार गुनहगार हैं। 'उनकी आत्मा को शांति दे'केवल सुशील जी ने नहीं लिखा है... हम सब ने लिखा है। सुशील जी के साथ खड़े हम सब पत्रकारों को पुलिस गिरफ्तार करे। जी हां, ये हमने लिखा है। ये आलोक तोमर ने लिखा है... ये बालेंदु दाधिच ने लिखा है... ये मनोहर नायक ने लिखा है... ये संजय तिवारी ने लिखा है... ये रविशंकर ने लिखा है... ये अनिल पांडेय ने लिखा है... ये राजेश जोशी ने लिखा है... ये राजेश सिन्हा ने लिखा है... ये राजेश आहूजा ने लिखा है... ये अनवर चौहान ने लिखा है... ये शम्स ताहिर खान ने लिखा है... ये संदीप कुमार ने लिखा है... ये हरविंदर ने लिखा है... ये उमानाथ ने लिखा है... ये ईमानदार पत्रकारों को पूरी जमात ने लिखा है। इन सबको गिरफ्तार कर लो।

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरे कहने के आशय ये है कि ये न केवल सुशील जी के साथ काम करने वालों ने... उनसे सीखने वालों ने बल्कि सच्ची पत्रकारिता के हितैषियों ने लिखा है।

    जवाब देंहटाएं

hamarivani

www.hamarivani.com