बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

चुपके से


अंधेरी रात के
गहरे सन्नाटे में
चुपके से
धीरे धीरे
मेरे क़रीब आकर
किसी ने
मुझसे कुछ कहा!

मैं सहमी
अलसायी
नींद में उलझी,
पूछ बैठी
कौन है?

कोई जवाब नहीं
ना कोई पद चिन्ह
ना कोई परछाई
फिर भी
छोड़ गया
एक निःशब्द सवाल!

मैं कौन हूँ?
मेरा वज़ूद क्या है!


Reference - Turning the wheel

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई; हमें भी अनुभूति होती है ऐसी। अन्तर यह है कि हमारे पार इतने बढ़िया शब्द नहीं हैं पेन-डाउन करने को।
    सन्नाटा बोलता है। आप सुनने वाले हों तो उसके शब्द बहुत साफ होते हैं।

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  2. बहुत पुरान लेकिन शाश्वत सवाल है। कठोपनिषद् पढें तो पता चलेगा यही सवाल यमराज से नचिकेता ने भी किया था। बहरहालकम शब्दों मे अच्छी कविता के लिए बधाई...

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  3. कोई जवाब नहीं
    ना कोई पद चिन्ह
    ना कोई परछाई
    फिर भी
    छोड़ गया
    एक निःशब्द सवाल!

    मैं कौन हूँ?
    मेरा वज़ूद क्या है!

    bahut khoob, sach mein yeh ek bahut bada sawaal hai.

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  4. बड़ा कठिन होता है यह सवाल और जब आ जाता है तो फ़िर परेशान कर देता है.
    आख़िर वजूद क्या है ?
    ओपनिंग शानदार है

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  5. कोई जवाब नहीं
    ना कोई पद चिन्ह
    ना कोई परछाई
    फिर भी
    छोड़ गया
    एक निःशब्द सवाल!
    मैं कौन हूँ?
    मेरा वज़ूद क्या है!

    सुन्दर कविता। कविता के माध्यम से एक शाश्वत सवाल को खूबसूरत तरीके से उठाया है।

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hamarivani

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