गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

दूँढना हल शेष! अभी यारों...!

लड़ना है शेष! अभी यारों
बढ़ना है शेष! अभी यारों

बेइमानों को आज़ादी है,
चाटुकारों के घर चाँदी है
बदकिश्मत मिहनत-कश जनता,
जनता के घर बर्बादी है
गढ़ना है देश! अभी यारों
बढ़ना है शेष! अभी यारों

डंडेवालों का झंडा है,
धनवालों का हथकंडा है
मजलूमों को है कफ़न नहीं,
जीवन जीना ही फंदा है
मढ़ना है वेश! अभी यारों
बढ़ना है शेष! अभी यारों

अस्मत दो नंबरवालों की,
किश्मत दो नंबरवालों की
बाकी की इज्ज़त बिक रही,
बदत्तर हालत श्रमवालों की
भरना है शेष! अभी यारों
बढ़ना है शेष! अभी यारों

सब दो नंबर का भाषण है,
झूठा-झूठा आश्वासन है
मजबूर निगाहों में आँसू,
सोना-सा महँगा राशन है
जीना है शेष! अभी यारों
लड़ना है शेष! अभी यारों

छिना-झपटी है कुर्सी की,
सब खेल है खूनी कुर्सी की
भाई-भाई का कत्ल करे,
यह "फूट" करिश्मा कुर्सी की
बनना है एक! अभी यारों
बढ़ना है शेष! अभी यारों

सत्ता की अदला-बदली है,
पर नीति बड़ी ही दोगली है
हालत बद-से, बदत्तर ही है,
जनता भी खूब ही पगली है
दूँढना हल शेष! अभी यारों
बढ़ना है शेष! अभी यारों

अधिक कविताओं के लिए देखें यायावरी

5 टिप्‍पणियां:

  1. दूँढना हल शेष! अभी यारों
    बढ़ना है शेष! अभी यारों
    सही कहा आपने. अभी काफी आगे बढ़ना है.

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  2. जैसे -जैसे पढ़ता गया , कविता के हर शब्द दिल की गहराईयों में उतरते चले गए .......बहुत सुंदर और सारगर्भित !

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  3. bhaarat ke yuva varg ko aisi josh bhari panktiyon ki bahut zaroorat hai..

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hamarivani

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