वेदना के दंश से,
फिर मन हुआ अधीर|
ये शब्दों के सिलवट नहीं,
हैं मेरे नयनों के नीर|
शब्द बेधते, अचूक लक्ष्य कर,
धुआँ उगलती, बुझी बाती|
क्षण-भर का अभिमान धरा,
है क्षण-भर की मेरी थाती|
स्वयं नहीं जब समझे मुझको,
तो क्या?, लिख भेजूं पाती|
मेरा होना, ना होना,
जैसे बह चले समीर|
ये शब्दों के सिलवट नहीं,
हैं मेरे नयनों के नीर|
चंचल क्षण की स्मृति,
हुक-प्रसव-सा लिये वरण|
कैसी अबूझ पहेली अपनी,
स्मृति ओढ़ता जीवन-कण|
मेरी भाषा, क्या परिभाषा,
निशि-दिशी पावस का क्रंदन|
रक्तिम चक्षु, अश्रु विप्लव,
सन्दर्भ-शेष का सार रुदन|
मेरी भाग्य विधा है जैसे,
शिला पर खिंची लकीर|
ये शब्दों के सिलवट नहीं,
हैं मेरे नयनों के नीर|
उत्तर
जवाब देंहटाएंइस एक बूँद आँसू में
चाहे साम्राज्य बहा दो
वरदानों की वर्षा से
यह सूनापन बिखरा दो
इच्छाओं की कम्पन से
सोता एकान्त जगा दो,
आशा की मुस्कराहट पर
मेरा नैराश्य लुटा दो ।
चाहे जर्जर तारों में
अपना मानस उलझा दो,
इन पलकों के प्यालो में
सुख का आसव छलका दो
मेरे बिखरे प्राणों में
सारी करुणा ढुलका दो,
मेरी छोटी सीमा में
अपना अस्तित्व मिटा दो !
पर शेष नहीं होगी यह
मेरे प्राणों की क्रीड़ा,
तुमको पीड़ा में ढूँढा
तुम में ढूँढूँगी पीड़ा !
लेखिका: महादेवी वर्मा
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंअभी तक जितना भी पढ़ा है,आपके रचनाओं में शब्द भाव का अभूतपूर्व संगम मनोभूमि को सराबोर कर जाती है..बहुत ही सुन्दर लिखते हैं आप...पढ़कर मन मुग्ध जाता है...
ऐसे ही लिखते रहें...शुभकामनाएं.
इस रचना को आप लोगों के द्वारा दिये सभी उपमाओं का मैं स्वागत करता हूँ, और अपेक्षा करता हूँ कि आपलोगों की सराहना निरंतर मेरे रचनाधर्म को प्रवाह देती रहेंगीं| धन्यवाद!
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