मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008

हिंसा, बदले और मानसिकताएं

फर्ज कीजिये राहुल राज का नाम रिजवान उर रहमान होता और उसने मुंबई की जगह अहमदाबाद में बस का अपहरण करने की कोशिश की होती। वहाँ पर वह कहता कि मै नरेंद्र मोदी को सबक सिखाना चाहता हूँ तो क्या होता ?
क्या उसके प्रदेश के नेता बिना पूरे देश की निंदा सहे प्रधान मंत्री से उसके मारे जाने के ख़िलाफ़ अपील कर पाते ?
क्या प्रधान मंत्री द्वारा गुजरात सरकार से स्पष्टीकरण मांगना इतने सहज तरीके से देखा जा पाता?
याद कीजिये बाटला हॉउस मामले को? क्या हर उस इंसान जिसने मुठभेड़ पर सवाल उठाये, को इतनी सहजता से लिया गया? दोनों मामलों में लोग जख्मी हुए। इंस्पेक्टर शर्मा की मौत अस्पताल में हुयी लेकिन क्या कोई कह सकता था कि उनकी मौत अवश्यम्भावी है जब उनको गोली लगी थी? क्या कोई कह सकता था कि जिस व्यक्ति को राहुल की गोली लगी थी वह बच ही जाएगा?
हम पुलिस की कार्यवाही का समर्थन नही कर रहे हैं पर बाटला हॉउस की दलीलें मुंबई में क्यों नही प्रभावी हैं? सभी न्यूज़ चैनल एक ओर से पूछ रहे हैं कि क्या राहुल को बिना मारे हल नही निकल सकता था पर जिन्होंने बाटला हॉउस में पुलिस पर प्रश्न उठाये उन्हें इतनी सहजता से क्यों नही लिया गया और जिन्हें दिल्ली पुलिस पर पूरा उन्हें मुंबई पुलिस पर यकीन क्यों नही है?
जब लालू ने कहा कि अगर नरेंद्र मोदी को सजा मिली होती तो आतंकवादी पैदा नही होते और भर्त्सना पायी पर इस मामले पर उसी तरह की बातें करने वाले सहजता से लिए जा रहे हैं।
याद करिए गुजरात के उस एन्काउन्टर को , बंजारा अभी भी जेल में है और उसे भुना कर मोदी गद्दी पर। अब बाटला हॉउस और मुंबई की बसों को कौन भुनायेगा ये सामने जल्दी आएगा।
आप कहेंगे कि इस दीवाली के पावन दिन ये शख्स ये क्या राग ले कर बैठ गया। पर क्या करें दीवाली पर बधाई देने जैसा कुछ नजर नही आ रहा है? हमारी क्या गलती है अगर हमें अपना घर बँटा हुआ हुआ दिख रहा है । क्या करें पर दिल भी तो खुश होना चाहिए न?
कल महाराष्ट्र के गृह मंत्री को टी वी पर देखा बड़े तैश में थे। गोली का जवाब गोली से बता रहे थे। उन्हें एक बिहारी कि इस हरकत पर इतना गुस्सा आ गया पर महीनों से राज और उसके गुंडों कि हरकतों पर तैश नही आया आखिर क्यों? ये मराठी और बिहारी का मामला है या फ़िर अकेले राहुल को तो गोली से वो निपटा सकते हैं और राज के गुंडों से डर लगता है? कल टी वी पर गृह मंत्री के चेहरे पर नजर आ रहा तैश क्या साबित करता है? क्या वो भी उसी मानसिकता के गुलाम नही हैं जो राज और उसके गुंडों की है। सच है कि अगर कानून व्यवस्था के नाम पर उन्हें तैश पहले आ जाता तो शायद नौबत यहाँ तक नही आती।
लोग बिहार की राजनीति की बुराई करते हैं पर कम से कम उन नेताओं में इतनी नैतिकता तो थी कि सभी दलों के नेताओं ने एकजुट हो कर बिहार में चल रही हिंसाओं की निंदा की। न जाने और लोग इतने समझ दार कब होंगे?

न्यूज़ चैनलों पर बाढ़ सी आई हुयी है । लोग हिंदू आतंकवाद शब्द लिख लिख कर उसका आनंद उठा रहे हैं। जैसे मालेगांव धमाकों के आरोपियों के हिंदू होने से इन्हे बड़ी तृप्ति हुई हो। जैसे इससे पहले कोई हिंदू आतंकवादी ही न रहा हो। जैसे स्टेन्स के हत्यारे, गुजरात दंगों के अपराधी, उड़ीसा के दंगाई, सभी संत रहे हों। ये बदले की वही पुरानी मानसिकता है जिसके तहत अयोध्या में ढांचा तोडा गया था, जिसके तहत सिख मारे गए थे, जिसके तहत देश भर में आतंवादी घटनाएँ हो रही हैं, जिसके तहत उड़ीसा में ईसाई जलाये जा रहे हैं और जिसके तहत गुजरात में नरसंहार हुआ था।
विश्वास न हो तो बशीर बद्र से पूछ लीजिये वो बताएँगे कि अगर मुसलमानों ने बम विस्फोटों में लोगो को मारा और अब हिंदू उसका बदला ले रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है। (अभी अयोध्या मामलें में उन्होंने ऐसे ही तर्क दिए थे।)। जिस देश में समाज को दिशा देने वाले साहित्यकार ऐसी सोच रखने वाले हो जाएँ उस समाज में त्योहारों का मतलब ही क्या है। क्यों और कैसे स्वीकार करें हम इस दीवाली पर शुभकामनायें?

हम विघ्नसंतोषी नही हैं हम भी खुशी चाहते हैं पर सब गृहमंत्रियों को चयनात्मक तैश आने की बीमारी हो जाए। लोग घटनाओं को नियत चश्मों से देखने लग जायें तो क्या करें आख़िर?
मालेगांव धमाको के संदिग्ध आतंकवादी दोषी हैं या नही इसका फैसला अभी कोर्ट को करना है (जैसे बाकी धमाकों के संदिग्ध आतंकवादियों का ) पर इससे पहले समाज को यह तय करना है कि उसे आतिफ और प्रज्ञा चाहिए या कलाम और अमर्त्य सेन। बाटला हॉउस हो या मुंबई की एक अभागी बस सिर्फ़ पुलिस और मीडिया की कहानी पर यकीन करना है या तथ्यों को आने देने का इंतज़ार?

21 टिप्‍पणियां:

  1. Roushan...I read one by one line of your article. It's too good with a bitter truth! It's an eye opener and now people have to think upon this.

    Well keep exploring!

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  2. दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें

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  3. आपको सपरिवार दीपोत्सव की शुभ कामनाएं। सब जने सुखी, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें। यही प्रभू से प्रार्थना है।

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  4. बद अच्छा बदनाम बुरा। सारे विश्व मे मुसलमान इतने बदनाम हो चुके है की सब लोग झट से विश्वास कर लेते की रिजवान उर रहमान अब्बल दर्जे का दहशतगर्द है। मुसलमान भाईयो को अपनी छवि सुधारने का प्रयास करना हीं चाहिए। आपकी टिप्पणी सटीक है।..... दीपावली की मंगलमय शुभकामना ...... लगे रहिए

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  5. काफी हद तक सही कह रहे हैं ।
    परन्तु यदि हम संसार में होने वाली घटनाओं से दुखी होकर अपनी छोटी छोटी खुशियाँ छोड़ दें तो जियेंगे कैसे ? हम ही समाज हैं, हमें भी खुश रहना सीखना होगा ।
    आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
    घुघूती बासूती

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  6. Bakwas kar rahe hain aap...donon ghatnaon mein koi tartamya nahin hai. Anargal pralap band kariye. Aur yahan comment karne walon ki jhoothi tarif se aatm-mugdh mat hoiye...inmen se koi bhi sach nahin bol raha hai.

    Diwali ki aapko aur aapke parijanon ko subhkamnayen!!

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  7. आप का सवाल वाजिब है पर सच से मंह चुराने वालों को चुभता है

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  8. बहुत जटिल मामला है। अल्टीमेट समाधान बिहार/पूर्वांचल के औद्योगिक विकास में है।

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  9. kyonki musalmaanon ko is desh men rahne ka hak nahi hai. unke pas pakistan hai. agar aise hi jari raha to ek nahi sau sadhvi paida hongi.
    rahul raj ki tulna atif jaise deshdrohi se mat karo.

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  10. @हिंदुस्थानी

    सबसे पहले तो आप हिन्दुस्तानी शब्द को सही से लिखिए और इसके महत्त्व को पहचानिए. हिन्दुस्तानी लिख देने से कोई सच्चा हिन्दुस्तानी नही हो जाता है. एक सच्चा हिन्दुस्तानी होने के लिए हिन्दुस्तान का दिल व ज़िगर चाहिए. जिसके पास ये ज़िगर होता है, उसके ज़ुबान पर ऐसी दकियानूसी बातें नही आती है. समझे आप? और आप कौन होते हें यह तय करने वाले कि किसे हिन्दुस्तान में रहना चाहिए और किसे नही? आप जैसे लोग ही पूरे देश को बर्बाद कर रहे हें. भारत वर्ष ओर भारत माँ पर जितना हक़ आपको है उतना ही उनके हेर एक पुत्र और पुत्री का है. अगर आपको इतनी ही समस्या हो रही है अपने देश में रहने में तो आप ही क्यूँ नही छोड़ देते हें ये भारत वर्ष? और अगर नही छोड़ सकते हें तो शांति प्रिय बानिए. अरे आपको क्या किसी को भी यह कहने का अधिकार नही मिला है कि हिन्दुस्तान में मुसलमान या हिंदू को नही रहना चाहिए! सच तो ये है कि हिन्दुस्तान में आप जैसे बहुरुपिया को नही रहना चाहिए. अगर आपमें थोड़ी भी अक्ल बची है तो आप ऐसी बातें करना बंद करें, और देश में सभी को एकता रूपी डोर में बाँधने का प्रयत्न करें. आपसे यही अनुरोध और आशा है.

    Shukriya!

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  11. mere new blog pe aapka sawagat hai......
    http://numerologer.blogspot.com/

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  12. सही कहा आपने अगर देखना है तो चीजों को एक साथ देखो तो सब कुछ समझ में आता है एकतरफा सोच से देश का भला नही होगा

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  13. एकमात्र समाधान कानून को सही निष्पक्ष ओर इमानदारी तरीके से लागू करने में है ,मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए उसे तुंरत फुरंत किसी भी नतीजे पर पहुँचने की जल्दी से बचना होगा ओर साथ में कही न कही एक लकीर खीचनी होगी जिसे समाचार संपादन कहते है ..कुछ खबरे हालात को बिगाड़ सकती है ....दरअसल अब हम सब सिर्फ़ शिकायते कर रहे है एक दूसरे से इस उम्मीद में की कोई आएगा ओर जादू की छड़ी घुमा कर इस समस्या से हमें मुक्ति दिलाएगा ..लेकिन इसका निदान हमें ही करना है ..शिकायते ओर गैर जरूरी बहस किसी समस्या का निदान नही करती है बल्कि उसे ओर जटिल बना देती है खास तौर से भारतीय समाज का जो ताना बाना है उसे....
    राज ठाकरे जैसे लोगो से अपराधी ओर असामाजिक तत्वों या देशद्रोह की तरह से निबटना चाहिए वरना वो दिन दूर नही जब भारत भी पकिस्तान ओर अफगानिस्तान की तरह ग्रह युद्ध में तबाह हो जायेगा

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  14. लोगों की मानसिकता कितनी विकृत हो गयी है, इसे बताने के लिए किसी उदाहरण की जरूरत नहीं। पर आपने इसी बहाने एक अच्छी पडताल की है। मीडिया तो उतना ही कहता है जो उसे पुलिस तंत्र बताता है। और यह सबको पता है कि पुलिस कितना सच बोलती है।

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  15. Basheer Badr popularism ka shikar hai. pahle sampradayikta ko mushayro mein bhunata tha ab sampradayik takton kee chakree karta hai. Fursat mein usse juda bhi ek sansmaran sunoonga..

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  16. aapke sawaal behad hi maakool hain ham hindustani hi ho paye hote to achchha hota

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  17. रौशन भाई हिन्दी में लिखने का तरीका बताने के लिए शुक्रिया

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  18. Punah ek baar vicharniya post hai aapki, magar Gyandatt ji ki baon mein hi samadhan ki sambhavana hai.

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  19. मानसिकता को बदलना तो मुश्किल ही होता है। पर आपका सराहनीय है।

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  20. रौशन जी, आपकी टिपण्णी जो आपने मेरे ब्लाग पर लिखी के सन्दर्भ में - भाजपा के बारे में आप सोचिये न, कुछ हम सोचें और कुछ आप सोचें. आप का भी तो कुछ कर्तव्य बनता है इस देश के लिए.

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